न चुप्पी थी
न ही बोलचाल
वह मुलाकात थी -
सौ साज़िशों का परिणाम
कह दूँ कि पानी पर सैर ,
वास्कोडि गामा की कब्र उनमें से एक थी
न ही बोलचाल
वह मुलाकात थी -
सौ साज़िशों का परिणाम
कह दूँ कि पानी पर सैर ,
वास्कोडि गामा की कब्र उनमें से एक थी
दूसरे शहर में
लोग बदल जाते हैं पर
प्रेम नहीं .....
हैरानी थी इसी बात की
कि
हमारा नाटक हमें नाटक नहीं लगा ।
लोग बदल जाते हैं पर
प्रेम नहीं .....
हैरानी थी इसी बात की
कि
हमारा नाटक हमें नाटक नहीं लगा ।
हवाओं की तरह का
हमारे हाथों का स्पर्श
और उनका हंसकर दूर हो जाना
तीसरा लाख चाहकर भी
प्रेम न देख पाए पर
हवा में तैरता मोह तो
परखता ही होगा ...
कौन जाने !
हमारे हाथों का स्पर्श
और उनका हंसकर दूर हो जाना
तीसरा लाख चाहकर भी
प्रेम न देख पाए पर
हवा में तैरता मोह तो
परखता ही होगा ...
कौन जाने !
अच्छा रहा
इस मुलाकात ने उन्माद नहीं दिया
बस पास होने ,
साथ चलने की
सुडौल ख़ुशी थी ।
जिस प्रेम ने कुछ बरस
बिता लिए
उसका दूसरे शहर में भी चलना
अपने शहर जैसा लगता है
जैसे रोज़ अपनी खिड़की से झांकना
इस मुलाकात ने उन्माद नहीं दिया
बस पास होने ,
साथ चलने की
सुडौल ख़ुशी थी ।
जिस प्रेम ने कुछ बरस
बिता लिए
उसका दूसरे शहर में भी चलना
अपने शहर जैसा लगता है
जैसे रोज़ अपनी खिड़की से झांकना
और उस अलग होने जैसा
अलग होना न हो
साजिशों पर निगरानियाँ तो
जीत ही जाती हैं
पर
यूँ खिड़की पर खड़ा होना
यूँ अफ़सोस में भी
हँसते हुए बाहर आना
ऐसे जैसे
फटे दूध की चाय
शहर जैसे शहरों में ही प्रेम
ऐसे जाता है
जैसे रूखी रोटी और नमक ।
अलग होना न हो
साजिशों पर निगरानियाँ तो
जीत ही जाती हैं
पर
यूँ खिड़की पर खड़ा होना
यूँ अफ़सोस में भी
हँसते हुए बाहर आना
ऐसे जैसे
फटे दूध की चाय
शहर जैसे शहरों में ही प्रेम
ऐसे जाता है
जैसे रूखी रोटी और नमक ।
कितना ही अजीब था न ये मिलना
न मिलने की तरह
होकर भी न होने की तरह
छूकर भी न छूने की तरह
न मिलने की तरह
होकर भी न होने की तरह
छूकर भी न छूने की तरह
बाहर आया तो
हवा का लहज़ा उतना ही नर्म
जानेवालों को जाने की उतनी ही जल्दी
कि भूल गए हों -
जल्दी को भी समय तो चाहिए ही
पर प्रेम तो
वहीँ रुका था तुम्हारे पास
हर बार
कुछ न कुछ तो छूटना रहता ही है ।
हवा का लहज़ा उतना ही नर्म
जानेवालों को जाने की उतनी ही जल्दी
कि भूल गए हों -
जल्दी को भी समय तो चाहिए ही
पर प्रेम तो
वहीँ रुका था तुम्हारे पास
हर बार
कुछ न कुछ तो छूटना रहता ही है ।
चलो तो
इस तरह
और साजिशें करते हैं ।
इस तरह
और साजिशें करते हैं ।
-आलोक रंजन
अरसे बाद एक उम्दा और बड़ी ही सम्मोहक ईमानदार सी कविता पढ़ने को मिली...! आलोक जी बधाई स्वीकारिए.....!
जवाब देंहटाएंवह मुलाकात थी -
सौ साज़िशों का परिणाम
कह दूँ कि पानी पर सैर
बस पास होने ,
साथ चलने की
सुडौल ख़ुशी थी
चलो तो
इस तरह
और साजिशें करते हैं ।
क्या बात है.....क्या बात है...!
धन्यवाद मित्र
हटाएंधन्यवाद मित्र
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