जनवरी 27, 2016

कौव्वे के बच्चे


बचपन से ही कौवों को देखता आ रहा हूँ । हाँ , सभी देखते हैं क्योंकि वे हैं ही इतनी बड़ी मात्रा में । वही कौवे जो कभी रोटी का टुकड़ा ले के भाग जाते थे कभी हमारे हाथ से कोई खाने का समान !

कौवे पहले ज्यादा खतरनाक काम करते थे । वे उड़ाई हुई रोटी के टुकड़े या कोई अन्य खाद्य पदार्थ खपड़े के नीचे छुपा देते थे और भूल जाते थे । फिर उन्हें जब याद आता तो छत के बड़े हिस्से के खपडों को उलटने पलटने की कोशिश करते । इस काम में कई खपड़े टूट जाते थे । फिर बारिश के मौसम में छत के उन टूटे हुए या खिसके हुए  हिस्सों से पानी की बूंदें टपकती थी । आज तो खपड़ैल वाली छत ही खतम हो गयी हैं ।

छठ पर्व के समय कौवों पर सबसे ज्यादा निगरानी रखी जाती थी । उस पर्व में पवित्रता का ज्यादा महत्व होता है । खरना के दिन जब आँगन में प्रसाद की सामाग्री धोयी -सुखाई और ओखली - मूसल में कूटी जाती थी तो स्त्रियाँ बांस की लंबी - लंबी करचियाँ लेकर कौवों को उड़ाती रहती थी । यदि किसी की सामाग्री में किसी कौवे ने चोंच भी भिड़ा दिया तो संबन्धित व्यक्ति और अन्य लोग भी इसे बड़ा अपशकुन मानते थे ।

पिछले कुछ वर्षों से छठ में शामिल ही नहीं हुआ हूँ तो अभी के हालात नहीं पता ।

खेतों में तो कौवों का उत्पात जग जाहिर है । मेरी माँ बताती हैं कि अपने बचपन में वे और उनके अन्य भाई बहन मकई बोने के बाद , फसलों में दाने आने के बाद खेतों में कौवों को भागने के लिए पुतले बनाकर लगते थे । उन पुतलों की शर्त ये होती थी कि वे डरावने हों । कभी कभी उन पुतलों से उन्हें ही डर हो जाता था । इतना ही नहीं वे कौवों को भागने के लिए गीत भी गाती थीं - 'हा - हो रे , पर्वतिया कौवा ...' ।

कौवों का उत्पात मैंने भी बहुत देखा है और ढेर सारी कहानियाँ भी सुनी हैं । लेकिन कभी कौवों का घोंसला देखने का मौका नहीं मिला । उनके बच्चों को तब ही देखता जब वे उड़ने लगते और बच्चे तभी लगते जब उनके माता - पिता उन्हें खाना खिलाते ।

अभी हाल में एक यात्रा के दौरान मुझे कौवे का घोंसला देखने को मिला साथ ही दिख गए कौवे के बच्चे । इतने छोटे जिनको बच्चे ही कह सकते हैं । उनकी चोंच काफी बड़ी थी उतनी ही जितनी वयस्क कौवों की होती है । कैमरा था तो तस्वीरें ले ली ।

वहीं मैंने एक और बात देखी कि उन बच्चों की देखभाल कौवा -कौवी ही कर रहे थे कोई कोयल नहीं । मैंने सुन रखा था कि कौवे अपने बच्चों की देखभाल नहीं करते , कौवे दुष्ट होते हैं और अपने अंडे कोयल के घोंसलों में रख आते हैं वगैरह । अब ये बातें कितनी सच हैं ये मैं नहीं जानता पर मैंने वहाँ जो देखा उससे कौवे मुझे दुष्ट नहीं लगे । हाल में दोस्तों ने बताया कि बात उल्टी ही है । कौवे के घोंसले में कोयल अपने अंडे रख जाती है । उसके बाद भी सभी बच्चे काले कौव्वे के समान ही थे । सो कोयल के होने की संभावना नहीं है । 
उनके बच्चे तो बहुत ही प्यारे थे ।

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