ऐसा बहुत कम होता है जब एक लेखक अपनी एक ही कृति से इस प्रभाव छोड़े कि वह आपके साथ साथ चलता हुआ सा लगे ,उस कृति
में आए संदर्भों जैसा कुछ भी दिखा नहीं कि उसको उद्धृत करने को मन मचलने लगे और
देखते ही देखते कृति का परिवेश , लेखक और संदर्भ बहुत परिचित
से हो जाएँ । चिनुआ एचबे की कृति ‘थिंग्स फॉल अपार्ट’ को पढ़कर ऐसा ही हुआ । उसके नितांत अफ्रीकी संदर्भ कब अपने हो गए इसका पता
ही नहीं चला फिर ऐसा लगने लगा कि नाइजीरिया का यह लेखक सामने के घर में रहता हो ।
दोस्तों से बातचीत में उन दिनों ( कुछेक संदर्भों में अब भी ) आने बहाने एचबे और थिंग्स फॉल अपार्ट का नाम जरूर आता था ।
चिनुआ ने थिंग्स फॉल अपार्ट में जिस समाज
को सामने रखा वह और हमारा भारतीय समाज दोनों की बनावट कुछ मानों में बिलकुल समान
है जिसने इस कृति से तत्काल जुड जाने में आधार का काम किया । साम्राज्यवाद तो ऐसा
था जिसने दोनों ही समाजों को एक ही तरह से प्रभावित किया । यहाँ यह बात कहनी जरूरी
है कि भारतीय उपमहाद्वीप और अफ्रीका महादेश की अपनी अपनी विशेषताएँ साम्राज्यवाद
में भी अलग- अलग थी और यही हाल अलग-अलग साम्राज्यवादी देशों का भी था जो अपने-अपने
तरीके से अपने उपनिवेशों का शोषण कर रहे थे । लेकिन मूल रूप में साम्राज्यवाद एक
ही तरह से काम कर रहा था जिसका प्रधान कार्य था साम्राज्यवादियों का लाभ । अपनी
गति से चल रहे समाज की बनावट में बाह्य तत्व के शामिल होते ही उसकी बनावट के बिखरे
के इतिहास को दोनों ही दुनिया साझा करती हैं । यही स्थिति व्यापार और वाणिज्य और
सामाजिक संतुलन के सिलसिले में भी है जिसके बिगड़ने की प्रक्रिया लगभग समान ही रही
है । चिनुआ की इस कृति को पढ़ते हुए कभी नहीं लगता कि यह हमारे भूगोल के इतिहास का
हिस्सा न हो ।
इस पुस्तक में चिनुआ जिन
संदर्भों को उठाते हैं और उनका जिस तरह का प्रस्तुतीकरण है वह कभी भी इस ख्याल से
बाहर आने ही नहीं देता कि हम भारत के किसी हिस्से के बारे में नहीं पढ़ रहे हैं ।
उदाहरण के लिए इगबो लोगों के विश्वासों को देखा जा सकता है जिसकी भाषा और भौगोलिक
विशेषताओं को छोड़ दिया जाए तो वह भारतीय ग्रामीण और आदिवासी समुदाय के विश्वासों
के समान ही लगता है । भारत की भाषाओं में से बहुत सारी भारोपीय परिवार की भाषाएँ
हों पर हमारा सांस्कृतिक इतिहास निश्चितरुपेण यूरोपीय तौर तरीकों का नहीं है ।
चिनुआ , थिंग्स फॉल अपार्ट में एक मुद्रा कौरी का जिक्र करते हैं आगे वे आपसी मोल
भाव के लिए कपड़े के भीतर हाथ डालकर दोनों पक्षों द्वारा एक दूसरे की अंगुलियाँ
पकड़ने के तरीके का भी जिक्र करते हैं । कहना न होगा कि ये सब भारत में भी होता था
और कौरी अब भले ही मुद्रा के स्तर से अपदस्थ हो गयी हो पर कपड़े के भीतर हाथ डाल कर
मोल भाव का तरीका अब भी अपने यहाँ प्रचलित हैं ।
इन तौर तरीकों और
विश्वासों को समान्यतया पिछड़ेपन और अंधविश्वासों से जोड़कर देखा जाता है । उस
उपन्यास में भी स्थानीयता पर श्वेतों का हमला इसी परिप्रेक्ष्य में हुआ । स्थानीयता
बचाने के प्रयास में नायक और अन्य तरह के लोगों को बड़ी कीमत चुकानी पड़ी । इन सबके
बावजूद यदि स्थानीयता बच पाती तो बड़ी बात थी । भारत के इतिहास में ढाका के बुनकरों
द्वारा अपना अंगूठा काटे जाने , ढाका और उस जैसे मुख्य केन्द्रों से उनका पलायन
कर जाने से ढाका का भुतहा शहर में तब्दील हो जाने आदि की कहनियों में पूरी सच्चाई
न भी हो तो तो भी इतना है ही कि अंग्रेजी शासन के अधीन बुनकरों और दस्तकारों को
बहुत बड़ा आघात लगा जिससे , बंगाल का सूत उद्योग पूरी तरह
नष्ट हो गया । दोनों ही महाद्वीपों के स्तर पर देखें तो हम कह सकते हैं कि इससे न
केवल स्थानीयता बल्कि स्थानीय ज्ञान भी आहत हुआ ।
पिछले वर्ष एक
प्रस्तुतीकरण (पता नहीं प्रेजेंटेशन के लिए यह उपयुक्त शब्द है या नहीं) के दौरान
अध्यापक ने पूछ लिया कि स्थानीय ज्ञान को बचाने की क्या जरूरत है जब सबका काम
मुख्यधारा में आने से हो रहा है और बेहतर तरीके से हो रहा है । वह प्रश्न थिंग्स
फॉल अपार्ट के सिलसिले में भी याद आता है । स्थानीय ज्ञान , स्थानीय
आवश्यकताओं के अनूरूप होते हैं जो वहाँ उपलब्ध प्रकृतिक संसाधनों पर आधारित होते
हैं । उस भौगोलिक क्षेत्र में हम नवीन से नवीन तकनीक पहुंचा दें पर सबके लिए
आवश्यक आर्थिक संसाधन उपलब्ध करवा पाना निश्चित तौर पर टेढ़ी खीर है । ऐसी दशा में स्थानीय
ज्ञान ही स्थानीय निवासियों के काम आता है । इस पर आक्रमण एक बड़ी आबादी को चकाचौंध
में लाकर खड़ी तो करती है पर उनके लिए वहाँ बिखराव के अलावा कुछ रह नहीं जाता है ।
चिनुआ इस स्थानीयता पर पड़ते दबाव को और उसके विरोध को रेंखांकित करते हैं । यह
दबाव स्थानीय संसाधनों का अपने स्वार्थ में उपयोग करने के लिए बाह्य तत्वों द्वारा
डाला जा रहा है और इसका औज़ार वही है अपने को श्रेष्ठ साबित करते हुए सभी आपराधिक
और गैर आपराधिक हथकंडे अपनाना । इतना सब तो भारत में भी हुआ और कहने को हम अपने
साहित्य पर गर्व भी बहुत करते हैं पर साम्राज्यवादी कब्जे और उसकी विभीषिका पर
थिंग्स फॉल अपार्ट जैसा सशक्त तो छोड़िए इससे हल्की कृति भी नहीं मिलती –दो चार
व्यंग्य नाटिकाओं और निबंधों को छोड़ दें तो ।
ऐतिहासिक तथ्यों के बीच
समवेदनाओं का खाली स्थान निरंतर बना रहता है जो घटनकरमों को एक नीरस व एकनिष्ठ रूप
देती है । जबकि इतिहास का जीवन भी एक जीवन रहा होगा जिसकी तमाम जटिलताएँ रही होंगी
और यदि वे सामने आती हैं तो स्वाभाविक रूप से इतिहास की बहुस्वीकृत मान्यताओं को
आघात लगेगा । थिंग्स फॉल अपार्ट का प्रकशन नाइजीरिया की आजादी के तीन साल पहले हुआ
था । और इसने इतिहास के तथ्यों के बीच के खाली स्थान को जब समवेदनाओं से भरा तो
अफ्रीकी देशों के संबंध में पूरी दुनिया का नजरिया बदला विशेषकर यूरोप का जो पूरे
विश्व को अपनी ही संपत्ति समझ कर उसका खून चूसते रहे । सहज रूप से चल रहा कबीलाई
जीवन जिसकी अपनी मान्यताएं हैं और उन मान्यताओं का अपना आधार है उसको प्रभावित कर
उसे छिन्न-भिन्न करने व उसके संसाधनों पर आधिपत्य जमाकर कबीलाई जीवन को केवल इस
लिए बर्बाद कर देना कि वह सभ्यता की यूरोपीय साम्राज्यवादी परिभाषा से बाहर है
इसका जबर्दस्त चित्रण किया है चिनुआ ने । यही वजह है कि उन्हें अपनी इस पहली ही
किताब से जबर्दस्त लोकप्रियता मिली ।
चिनुआ ने लेखन की एक
सर्वथा नवीन पद्धति विकसित की जब मौखिक महावृत्तांतों को साहित्य में उसी रूप में
पेश कर दिया । थिंग्स फाल अपार्ट में भी यह कई बार दृष्टिगत हुआ है । उनहोंने अपने
लेखन के लिए अंग्रेजी चुनी जिसने उनकी बातों को दूर दूर तक पहुंचाया और इस पुस्तक
की लोकप्रियता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह 50 से ज्यादा भाषाओं में
अनूदित हुई।
थिंग्स फॉल अपार्ट को केवल
इसलिए नहीं पढ़ा जा सकता कि उसमें साम्राज्यवादी खटकरम का चित्रण है और वह कबीलाई
जीवन के बाह्य तत्वों के प्रभाव में आकर टूटने का उपन्यास है बल्कि इसलिए भी कि
इसमें चिनुआ ने किस बारीकी से स्थानीय संदर्भों को बरता है और उन्हें साहित्य का
स्तर दिया है । वे तमाम लोक बिम्ब और लोकगीत भाषा नहीं समझ आने के बावजूद उपन्यास
को गति देते और लेखकीय कुशलता पर मुग्ध कराते प्रतीत होते हैं ।
चिनुआ आज हमारे बीच नहीं
हैं पर उनका थिंग्स फॉल अपार्ट इस कदर हावी है कि उनके नहीं होने का विश्वास नहीं
हो रहा और मन ये सोचना भी नहीं चाहता कि वह नहीं हैं ।