जुलाई 14, 2021

ऐसी रातों का साथ



 

 

रात की सैर, अंधेरे के घर में अपना प्रवेश है ठीक जिंदगी की तरह ! बहुत पहले से मैंने जिंदगी को अंधेरी सुरंग मानना शुरू कर दिया था । हर बात की अनिश्चितता ! और एक बार कुछ तय हुआ तो फिर दिन निकलने के बाद जैसे अंधेरे का घर उजड़ता है जिंदगी भी खुल जाती है । तब शायद बिखर जाती है । बिखराव इंसान का हो तो एक बात लेकिन बिखरी हुई जिंदगी को जीना इंसान से बहुत कुछ ले लेता है ।

 

एक कड़क कॉफी की जरूरत इसलिए पड़ जाती है क्योंकि नींद में नहीं जाना । यह भी क्या कि सुबह से शाम तक कोल्हू के बैल बनो और फिर थक कर सो जाओ । थकने के बाद का जागना समय के साथ अपनी लड़ाई को मजबूत करता है । कॉफी के ऊपर के फेन में जो कॉफी की गर्मी को सहेज रखने की क्षमता है वह अपने भीतर आ पाती ।

 

रात किसी स्थान के मायने को बदल देती है । सड़क से उस स्थान की खुली खिड़कियाँ नहीं बल्कि दुकानों के उदास शटर दिखते हैं । ये वही शटर हैं जिनके खुले होने को एंटोन चेखवभूखे जबड़ों की संज्ञा देते हैं । रात उन जबड़ों को उदास कर देती है । उन जबड़ों के पार खिड़कियाँ होंगी जिनके पर्दे की झिरी से घर का आनंद दिखता होगा लेकिन एक यात्री वह आनंद कभी नहीं देख पाता । यात्री जो देखता है वह बस बाहरी दुनिया है ।

 

बिना बारिश की मेघाच्छन्न रात में एक तारा कोई टिमटिमाता है और उसी के सहारे बाहर निकला व्यक्ति चलता है । दुकान में ऊँघते इन्सानों की आँखों में वही तारा कब आकार बैठ जाता है पता ही नहीं चलता ! अभी यह बेकार की बात लगती है । वह अकेला तारा आँखों में लेकिन देह पर हजारों बूंदें । बाइक की तेज़ी से खाली हुई जगह को भरने आती हवा विनोद कुमार शुक्ल की याद दिलाने से पहले बरनुली थ्योरम याद कराती है क्योंकि पहले वही पढ़ा गया था ! हवा पानी सब मिलकर कंपकपी छुड़ा देते हैं हाइवे पर भरी बारिश में एक ऊँघता व्यक्ति ही आसरा बनता है । वहाँ दूध कब का खत्म हो चुका है इक्का दुक्का रुकने वाले काली चाय या काली कॉफी के लिए रुक जा रहे हैं !   

 

जब तक वह काली कॉफी मिले ताबतक मेरे पास सोचने के लिए कुछ है । शायद दिन भर का हिसाब ! प्रकृति का शुद्धतम रूप मेरे पास है तो मैं उसे गर्व की बात मानता हूँ । मुझे उसकी तस्वीरें लेने और दिखाने में मज़ा आता है  मैं वहाँ घंटों बैठकर उसे निहारता रह सकता हूँ । जरूरी नहीं है कि मुझे इससे कुछ मिल ही जाये । मेरे लिए बस यही खुशी की बात है कि मैं किसी जंगल तक जा सकता हूँ, झरने में पाँव डालकर बैठ सकता हूँ कहीं कभी मौका मिला तो हाथी के आगे आगे जान बचाने के लिए भाग सकता हूँ । यह सब बिना किसी उद्देश्य के होता है मेरे लिए । कई बार मिलता भी है । भरी नदी में तैरना सीखा मैंने ! एक बार हथियों के झुंड ने दौड़ा लिया तो पता चला कि मौत के इतने करीब से बचकर निकल आने से कितना साहस भर जाता है ।

 

मुझे किसी और जगह की नदी की दुर्दशा पर बात करने का कोई हक़ समझ में नहीं आता जबतक मैं अपने आसपास की नदी के महत्व को न समझूँ । यदि जंगल अपने मूल रूप में बने हुए हैं तो यह एक उपलब्धि है, इसकी तस्वीर लगाना इसलिए ज़रूरी लग जाता है कि जंगल के असल रूप को दूसरे लोग भी देख सकें

 

काली कॉफी का स्वाद , बरसती ठंडी रात में हाइवे की दुकान पर कॉफी पीने जानेजैसी आभिजात्य सुलभ सुविधा के साथ न्याय नहीं करती !  

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