चंदा मामा , चंदा मामा , हँसुआ दअ
ऊ हँसुआ काहे के , खरई कटावे के ,
ऊ खरई काहे के , बरधा खियावे के ,
बरधा खियावे के खरई दअ ...
चंदा मामा , चंदा मामा, हँसुआ दअ
ऊ बरधा काहे के , हरवा चलावे के ,
ऊ हरवा काहे के , खेतवा जोतावे के,
खेतवा जोतावे के हरवा दअ ....
चंदा मामा , चंदा मामा, हँसुआ दअ
ऊ खेतवा काहे के , अन्न उपजावे के,
ऊ अन्नवा काहे के , सबके खियावे के,
सबके खियावे के अन्नवा दअ ...
चंदा मामा , चंदा मामा हँसुआ दअ !
भोजपुरी भाषा की यह लोरी कितनी छोटी जरूरतों की बात करती है ... जब हम इस तरह के गीत सुनते - पढ़ते हैं तो स्वाभाविक रूप से पुरानी चीजों को याद करने लगते हैं और आज से उसकी तुलना करने लगते हैं , जिसे कई बार लोग स्वीकार नहीं करते । लेकिन केवल पुरानी बात और नोस्टाल्जिया का हवाला देकर ऐसे गीतों को ख़ारिज नहीं किया जा सकता । ये गीत हमें जीवन का वास्तविक अर्थ समझाते हैं और अंत तक आते आते जिस तरह सब की बात करने लगते हैं वह आज की लोरियों में नहीं मिल सकता !
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