आज मैंने अपनी कक्षा में एसएमएस मार्केटिंग का जिक्र किया बाजार के पहुँच को समझाने के लिए । पाठ था जैनेन्द्र का बाजार दर्शन । बात उस से आगे बढ़ गयी कि उसी तरह एसएमएस से जुड़े किस्से की तरफ ।
कुछ दिनों पहले एक एसएमएस आया था एक कंपनी का कि तीन कपड़े खरीदने पर कंपनी तीन और कपड़े मुफ्त दे देगी । मेरे पास पैसे नहीं थे तो मैंने अपने एक मित्र को यह बात बताई उसने कहा वो ले लेगा । हम दोनों चल दिए । दुकान वाले से उस छूट के बारे मे बात की तो उसने कहा हम ये छूट यहाँ नहीं देते । केरल में इस तरह की छूट नहीं चलती । मेरे लाख समझाने पर भी कि कंपनी वही है और एसएमएस में साफ कहा गया है कि यह राजस्थान में लागू नहीं है वह दुकानदार नहीं माना । हम दोनों दोस्त मायूस होकर चले आए ।
जब मैंने यह किस्सा अपने छात्रों को बताया तो उनमे से एक ने कहा कि गुरुजी आप केस कर दो । मैंने कहा रहने दो । पता नहीं कुछ हो भी पाएगा कि नहीं ।
इस पर एक लड़की बोल उठी कि गुरु जी आपने पिछले साल ग्यारहवीं में दुष्यंत का एक शेर कहा था -
न हो कमीज़ तो पैरों से पेट ढँक लेंगे
ये लोग मुनासिब हैं इस सफर के लिए ।
और आप ही कुछ नहीं होगा इसलिए केस नहीं कर रहे हैं ।
न हो कमीज़ तो पैरों से पेट ढँक लेंगे
ये लोग मुनासिब हैं इस सफर के लिए ।
और आप ही कुछ नहीं होगा इसलिए केस नहीं कर रहे हैं ।
मैं इस बात से चकित था कि यहाँ केरल के विद्यालय में जहां कल का पढ़ाया हुआ आज भूल जाते हैं बच्चे , पिछले साल का पढ़ाया गया शेर याद कैसे रह गया उस बच्ची को । दूसरी बात कि हिन्दी की कोई कविता भी नहीं एक मुकम्मल शेर । कविता तो कई बार गाते सुनते हैं तो याद होना लाज़िमी है पर शेर और ग़ज़ल बड़ी चीज है इनके लिए ऐसा मैं मानता था ।
पर वह आश्चर्य ज्यादा देर तक नहीं रहा क्योंकि शेर दुष्यंत का था । दुष्यंत जिनके शेर लोकोक्तियों की शक्ल ले चुके हैं उनके लिए यह बड़ी बात नहीं कि किसी की जुबान पर चढ़ जाये और वह सही समय पर उपयोग कर ले ।
और ऐसे शायर हमे यह शुबहा भी दे जाते हैं कि छात्रों के साथ जो काम मैं करता हूँ या जो मेरा तरीका उसे आगे बढ़ाते रहना चाहिए ।
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