जनवरी 27, 2016

धनुष्कोटी के खंडहर


दरअसल मेरी यात्रा का उद्देश्य केवल धनुषकोटी ही जाना था बाकी जगहें तो आसपास होने के कारण बाद में जुड़ती चली गईं । यहाँ जाना उसी दिन तय कर लिया था जब मैंने इसके बारे में पढ़ा था मतलब काफी पहले । बस समय मिलने की देर थी और मैं पहुँच गया ।
धनुष्कोटि हमारे हालिया इतिहास का हिस्सा है । बहुत पुरानी बात नहीं है बस 1964 की है जब एक शाम भीषण चक्रवाती तूफान ने इस अंतिम छोर पर बसे गाँव को घेर लिया और कुछ ही घंटों में गाँव तबाह हो गया । कहते हैं धानुष्कोटि स्टेशन पर एक ट्रेन तभी तभी आकर रुकी थी जब वह तबाही शुरू हुई । उसमें ज़्यादातर बच्चे सवार थे । कुछ ही बच पाये । उस तूफान ने सब कुछ ख़त्म कर दिया । बहुत लोग मारे गए और यह गाँव लोगों के रहने के लिए अनुपयुक्त घोषित कर दिया गया । जो लोग बचे उनसे वह स्थान खाली करवा लिया गया और वे आस पास के स्थानों में रहने भेज दिए गए ।

वह गाँव उस तबाही की रात से पहले एक भरा पूरा गाँव था ... हाँ समुद्र से उसकी कुछ ज्यादा ही निकटता थी सो उसके परिणाम से गाँव अवगत होगा ही लेकिन इतने बुरे परिणाम की किसी ने कल्पना भी नहीं की थी । वही डर है कि आज भी लोग वहाँ से रात को निकल जाते हैं और आज भी वहाँ स्थायी बसावट नहीं है ।

धनुष्कोटी राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या -49 का अंतिम बिन्दु है उसके बाद समुद्र फिर श्रीलंका । वहाँ तक जाने के लिए रामेश्वरम जाना ही पड़ता है जहां से आगे 20 किलोमीटर की यात्रा करनी पड़ती है । अब तो सरकारी बसें उस ना-आबाद गाँव से 6 किलोमीटर पहले तक जाती हैं फिर आप को या तो मेटाडोर या फिर जीप मिलेगी । पास में ही कथित राम सेतु और वह बिन्दु भी है जहां बंगाल की खाड़ी और हिन्दी महासागर मिलते हैं ।

धनुष्कोटि तक पहुँच जाना मेरी उपलब्धि थी । वहाँ पहुंचा तो उसे उसी तरह स्थिर और मूक पाया जैसी मैंने कल्पना की थी । उन इमारतों के हिस्से अब भी खड़े हैं जिन्हें देख कर अंदाजा लगा सकते हैं कि कभी इनमें लोग रहते होंगे , कभी यहाँ भी चहल पहल रही होगी । सड़क की ईंटें समुद्री लहरों से उखड़कर बाहर आ गयी हैं लेकिन भरपूर अंदाजा देती हैं कि कभी वह कितनी काम की रही होगी । रेलवे स्टेशन के अवशेष खड़े हैं उसकी पानी की टंकी कि पूरी की पूरी संरचना खड़ी है । स्कूल की दीवार के हिस्से बचे हैं , अस्पताल के कमरों के ऊपर छत नहीं हैं दरवाजे नहीं हैं लेकिन उसके कमरों की निजता अभी भी सुरक्षित है । हाँ उन कमरों में लारों द्वारा भर दी गयी रेत का साम्राज्य है । डाकघर, मंदिर और सबसे ऊंचे सिर उठाए खड़ा चर्च जिनमें कभी लोगो की ठीक ठाक आवाजाही रही होगी आज क्षत विक्षत खड़े हैं ।


स्टेशन , डाकघर , अस्पताल , मंदिर , चर्च आदि संस्थान बताते हैं कि यह उस 1964 में बड़े महत्व का स्थान रहा होगा । इसका महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है कि यह श्रीलंका से बस 18 मील दूर है । वहाँ से कुछ दिखता तो नहीं था पर वोडाफोन मोबाइल पर श्रीलंका का संदेश जरूर आ गया ।

इन संस्थानों से अलग लोगों की बात करें तो उनके घर भी उसी तरह ध्वस्त हो गए जैसे उनके प्राण । जो बचे वे घर छोड़ कर चले गए भविष्य की किसी आपदा से बचने के लिए । यहाँ रह गए उनके घर जो समय के साथ खाली और नष्ट होते चले गए । मकानों की बनावट से पता चलता है कि धनुष्कोटि काफी पहले से आबाद रहा होगा और कालांतर में लोगों ने स्थायी घर बना लिए । पर तूफ़ान ने उन्हें यह मानने पर बाध्य कर दिया कि यह स्थान जीवन के अनुकूल नहीं है ।

इन खंडहरों और समुद्र को मिलाकर एक पूरे लैंडस्केप को देखें तो यह स्थान कितना ही सुंदर और भव्य लगता है । हल्की स्वर्णिम रेत पर खड़े धूसर रंग के खंडहर और इन सब की पृष्ठभूमि में जहां तक नजर ले जाइए नीला समंदर । इस गाँव में जहां कोई नहीं रहता , जहाँ समुद्र ने इतनी बड़ी तबाही मचाई उसका समुद्र तट इतना सुंदर, आकर्षक और शांत कैसे हो सकता है ?

नीले समंदर पर रुई जैसे सफ़ेद बादलों वाला आकाश ... और सूरज की तेज चमक वाली रोशनी सब तो हैं वहाँ पर उसके अपने लोग नहीं हैं । पर्यटक हैं जो शाम से पहले निकल जाएंगे या नहीं तो निकाल दिए जाएंगे ।

वहाँ किसी दीवार के साये में खड़े होकर या फिर टूटे हुए मंदिर में धूप से बचने के लिए बैठे हुए कुत्ते को देखकर कई बार यह खयाल आता है कि यहाँ भी ठीक वही दुनिया रही होगी जहाँ से हम आते हैं । उतनी ही हंसी और आँसू रहे होंगे । किसी ओर से मछलियाँ पकड़ी जा रही होंगी और किसी घर से मछलियों के पकने की महक आ रही होगी । पर अभी तो बस अंदाजे हैं ।

भारत सरकार बहुत तेजी से वहाँ तक का राष्ट्रीय राजमार्ग ठीक कर रही है जो तब तबाह हो गया था । यह काम कई सालों से चल रहा है । सड़क को दोनों तरफ से पत्थरों से घेरा जा रहा है ताकि कठिन से कठिन अवस्था में भी सड़क सुरक्षित रहे । इसलिए समय लग रहा है और एक दो साल और लगे । इस बीच वहाँ हो आना ज्यादा अच्छा है क्योंकि जो रोमांच मेटाडोर से पानी के बीच में चलने में है वह राष्ट्रीय राजमार्ग से कतई नहीं मिलने वाला ।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

स्वागत ...

हिंदी हिंदी के शोर में

                                  हमारे स्कूल में उन दोनों की नयी नयी नियुक्ति हुई थी । वे हिन्दी के अध्यापक के रूप में आए थे । एक देश औ...