
वर्कला का समुद्र तट रंगा रहता है समंदर के रंग से , किनारे की लगातार ढहती हुई लाल मिट्टी के रंग से और सबसे बढ़कर सूरज के रंग से !
यहाँ पर बालू की पट्टी कम चौड़ी है जिसकी जगह पत्थर मिट्टी की खड़ी ऊंचाई ने ले रखी है और यही ऊंचाई इस तट को ख़ास अंदाज देती है जो भारत के किसी अन्य समुद्री तट से बिलकुल जुदा है ।
यह जितना रंगीन है उतना ही व्यक्तिगत और शांत भी ... जहाँ भीड़ रहती है उससे थोड़ी दूर दायें या बाएँ चले जाइए आप भीड़ से न सिर्फ अलग हो जाएंगे बल्कि ओझल भी । शायद इसीलिए विदेशियों का यह प्रिय तट है ।
एक बात मैंने फिर से देखी - विदेशी हमारी फोटो खींचने के लिए झट से तैयार हो जाते हैं पर अपने देसी तो पता नहीं किस गुमान में रहते हैं ।
सबसे मजेदार क्षण वह था जब सूरज ने पानी की सतह को छू लिया फिर दिन बड़ी जल्दी और खामोशी से छिप गया था तब सबसे ज्यादा जल्दी मुझे थी क्योंकि वहाँ से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर मैं ठहरा हुआ था ।
केरल के तटीय इलाकों में ट्रेन से जरूर यात्रा करिए ... हो सके तो पैसेंजर ट्रेन से । इस यात्रा में जो नजारे दिखेंगे वे आपकी उम्मीद से काफी अलग होंगे !
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