मुझे
नहीं पता कि समूचे भारत में इसकी कोई खबर है भी या नहीं । यह भी मेरी जानकारी से बाहर
ही है कि हिन्दी के 'राष्ट्रीय' अखबार और समाचार चैनलों ने इसको कितना महत्व दिया । पर जिस तरह से हम समाचार
के संबंध में पढ़ते आए हैं कि उसमें अनोखापन होना चाहिए तो इसमें अपनी तरह का अनोखापन
भी है । समाचार की दुनिया में ऐसा माना जाता
है कि कुत्ते ने आदमी को काट लिया तो सामान्य बात और आदमी ने कुत्ते को काट लिया तो
अनोखापन और जब बात में अनोखापन आ जाए तो वह खबर बन सकती है । बहरहाल उस घटना में इस
अनोखेपन का मसाला भी था सो उसके खबर बनने की पूरी संभावना दिखती है ।
अयप्पन की जो तस्वीर मैंने देखी उसमें वह कोई बहुत मजबूत युवक नहीं लगता और इतना मजबूत तो कतई नहीं कि वह अपनी गर्भवती पत्नी को अपनी पीठ पर लाद कर लगभग 18 घंटे चलता रहे और उसे अस्पताल तक ले आए । इस असंभाव्यता के बावजूद उसने ऐसा किया । अयप्पन की यदि पहचान बताई जाये तो यह बताना ही पड़ेगा कि वह आदिवासी है । यहाँ मेरा आदिवासी शब्द से परहेज इसलिए है कि हमने जिस तरह से इस शब्द को समझा है वह इस शब्द के प्रयोग को ही कटघरे में खड़ा कर देता है । शायद सबसे बुरी पहचान यही शब्द देता है । इसी तरह इसका अंग्रेजी समकक्ष 'ट्राइबल' भी एक हीनता ही प्रदर्शित करता है । अयप्पन एक आदिवासी है और उसका घर केरल के घने वनों के इलाके कोन्नी में है । अबतक शायद किसी ने ये नाम सुना भी न होगा पर अचानक से यह नाम कम से कम केरल के सभी समाचार पत्रों में तो आ ही गया ।
जो तस्वीर अखबारों में छपी उसमें वह पीली कमीज पहने हुए है खूब बढ़ी हुई दाढ़ी है और बिखरे से बाल, नजरें नीचे । तस्वीर देखने से लगता है कि वह बिलकुल ही निरपेक्ष सा है । आम तौर पर होता है कि मिडियाकर्मियों को देखते ही लोग मुखर हो जाते हैं । कष्ट में हैं तो गहरी विह्वलता प्रदर्शित की जाती है ताकि उनकी ओर ध्यान जाए । अयप्पन शायद न जनता हो कि उसने जो किया उसे लोग एक कौतूहल की दृष्टि से देखेंगे । लोगों के लिए भले ही यह एक अनोखी बात हो पर उसने तो केवल अपनी पत्नी की जान बचाई ।
अयप्पन का घर देश के उन्हीं इलाकों में से एक है जहां स्वास्थ्य सेवा स्वतन्त्रता के इतने वर्षों बाद भी नहीं पहुँच पायी हैं । उसकी पत्नी सुधा जब गर्भवती हुई तो उसके लिए वहाँ कोई डॉक्टरी नहीं थी । इन इलाकों में कोई सुविधा ही नहीं है तो सुधा क्या किसी की भी हालत खराब हो क्या फर्क पड़ता है ! देश को भी कोई फर्क नहीं पड़ता ! सुधा को उसके पति अपनी पीठ पर ढ़ोकर बाहर अस्पताल तक पहुंचा तो दिया पर उसका बच्चा नहीं बच पाया । शायद सुधा भी नहीं बच पाती पर समस्याओं से लड़ने की जिद ने उसे बचा लिया । इसके साथ ही यह उस अंधेरे दायरे में हमें ले जाता है जहां अब भी यदि आदमी बीमार हो तो अपने हाल पर छोड़ दिया जाता है । मीडिया इसे अपने तरह की पहली और एकमात्र घटना मान रहा है । इसकी यह विशेषता यह सोचने पर बाध्य करती है कि यदि सुधा का पति उससे इतना प्यार नहीं करता तो सुधा का क्या होता ! जो उसके इलाके या उस जैसे कई इलाकों के लोगों का होता आया है वही होता । मौत उसे बता कर आती और कोई कुछ नहीं कर पाता ।
अयप्पन जब अपनी पत्नी को पीठ पर बांध कर चला था तब सुबह भी ठीक से नहीं हुई थी और लगातार बारिश भी हो रही थी । जंगल और पहाड़ी रास्ते पर धारासार वर्षा पर अयप्पन के लिए चिंता का विषय केवल जंगली हाथी थे । उसे पता था कि उसकी हिम्मत उसे बारिश और रास्ते के असहयोगों से तो बचा लेगी पर उन्मत्त जंगली हथियों से बचना मुश्किल है । उसे हाथी नहीं मिले । किसी तरह वह रात को अस्पताल पहुँच पाया । छोटे अस्पताल से फिर उन्हें बड़े अस्पताल जाना पड़ा । उसने जब ये बातें पत्रकारों को बताई होगी तो उसके चेहरे पर भी संतोष रहा होगा और देखने सुनने वाले के लिए यह किसी आश्चर्य से कम नही रहा होगा । यह तो वही जनता होगा कि कितना कठिन रहा यह सब ।
इसे एक गाथा के तौर पर मैं भी देख रहा हूँ और मुझ जैसे बहुत से लोग होंगे । हम इस बात से खुश हो सकते हैं कि हमें एक ऐसी प्रेम गाथा मिल गयी जो हमारे समय में घटित हुई है और इसकि हम जांच कर सकते हैं । अन्यथा हमारी गाथाएँ तो अपने ऊपर संदेह करने का भी अवसर नहीं छोडती । पर क्या यह गाथा हमारे समाज के लिए जरूरी थी । निश्चित तौर पर नहीं । लेकिन हम जिस तरह से काम करते हैं बल्कि हमारी तमाम प्रणालियाँ जिस तरह से काम करती हैं वे इस तरह की गाथाओं के प्रकाश में आने के बाद भी यह ज़ाहिर भी होने देती हैं कि उनका अस्तित्व भी है । अयप्पन जैसे लोग हमारी व्यवस्था के मुखौटे को उतार कर उसे उसके मूल रूप में ले आते हैं जहां लोककल्याण जैसी कोई बात ही नहीं है । अपनी पत्नी से प्रेम प्रदर्शित करना बहुत बढ़िया बात है पर यदि ऐसा करने के लिए इतना संघर्ष करना पड़े तो विरले ही हिम्मत कर पाएंगे । सरकार के लिए तो यह उन्हीं बहुत सारी घटनाओं में से एक है जो शायद कोई महत्व नहीं रखती पर इसके माध्यम से स्वास्थ्य सेवाओं की बहाली के प्रति उसकी उदासीनता छिप नहीं पाती है ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
स्वागत ...