हम
मित्रों की एक आदत है कि जो भी कुछ नया हो वो एक दूसरे से जरूर साझा किया जाए ।
बहुत सारे या लगभग सभी ऐसा ही करते होंगे लेकिन हम शायद मित्रों से साझा करने के
लिए ही नया नया खोजते रहते हैं । संगीत और वीडियो के मामले में ऐसा खूब होता है ।
परसों मित्र ने अपने फोन को स्पीकर से जोड़ कर ध्यान से सुनने के लिए कहा । हालांकि
आवाज इतनी स्पष्ट और तेज थी कि उसके लिए ध्यान देने कहना समझ नहीं आया ।
वह
किसी एफ एम चैनल के किसी कार्यक्रम के एक हिस्से की एक रिकॉर्डिंग थी । प्रस्तोता
ने किसी एक व्यक्ति को फोन मिला कर उससे तीन गानों में से किसी एक के संगीत
निर्देशक का बताने पर उसके मोबाइल फोन खाते को 150 रुपयों से रीचार्ज करने की बात
कही । वह व्यक्ति सहज ही तैयार हो गया । उसे जो तीन गाने सुनाये गए वो अरब या रूसी
मूल के रहे होंगे या फिर चैनल और प्रस्तोता ने खास तौर पर तैयार कराये होंगे ।
जाहिर ही है कि वह व्यक्ति नहीं बता पाया । इसके बाद असली खेल शुरू हुआ ।
प्रस्तोता द्वारा कहा गया कि क्योंकि वह व्यक्ति किसी भी गाने के निर्देशक नाम नही
बता पाया इसलिए उसके मोबाइल के खाते से 900 रूपय काट लिए जाएंगे । अभी नहीं होंगे
तो बाद में उसके रीचार्ज कराते ही काट लिए जाएंगे । इसके बाद उस व्यक्ति का धैर्य
जवाब दे गया । उसने तरह तरह की गालियाँ देनी शुरू कर दी । उन गालियों को किसी भी
पैमाने पर रखें तो वीभत्स की श्रेणी ही मिलेगी । फिर प्रस्तोता ने उस व्यक्ति को
गुस्सा न होने की सलाह देते हुए उसके मित्र का नाम बताया जिसने प्रस्तोता का उसका
नंबर दिया था । इसके बाद तो उस व्यक्ति का गुस्सा और बढ़ गया उसने अपने उक्त मित्र
को ठीक ठाक मात्र में गाली देते हुए अपने बैंड बजने की बात स्वीकार कर ली और
सम्पूर्ण निर्लज्जता के साथ एक जोरदार हंसी भी हंसी ।
इसके
बाद मित्र ने किसी ‘सानिया भाभी’ की रिकॉर्डिंग सुनाई । सानिया भाभी की आवाज की
सायास मादकता और उनके संवादों में स्पष्ट आमंत्रण और द्विअर्थी में से व्यंग्यार्थ
की ओर झुकाव उन्हें ‘सविता
भाभी’
का रेडियो संस्करण बना देते हैं ।
इस
तरह के काम एफ एम चैनलों पर पहले भी होते थे पर तब और आज में एक अंतर आ गया अब
गालियों के लिए बीप का प्रयोग नहीं किया जाता कम से कम इस चैनल ने तो नही किया ।
उक्त चैनल अपने को ‘आप के जमाने का चैनल’ कहता है ‘बाप के जमाने का नहीं’ ।
गालियों का अस्वीकार पुरातनपंथी होना है और गालियों की सार्वजनिक प्रस्तुति ‘कूल’ होने
की पहचान । कूल होना मतलब गालियां देना या इसको स्वीकार करना यह इन आज के जमाने एफ
एम चैनलों के बहुत सारे सरलीकरणों में से एक है । कूल होना बुरा नहीं है पर इसके
बनने के क्रम में एक बात को बिलकुल नजरंदाज किया जा रहा कि ये गालियां फलित कहाँ
हो रही हैं । उनका सीधा असर सुनने वाले की माँ ,बहन और अन्य स्त्री संबंधियों पर ही होता है ।
बोलने वाला और सुननेवाला दोनों गालियों के असर से मुक्त होता है । गालियां तत्वतः
एक शाब्दिक बलात्कार हैं जिनसे यह ध्वनित होता है कि गाली देने वाले को बस मौका
मिलने की देर है इसलिए तब तक वह शब्दों से काम चला रहा है अन्यथा वह अपने पुरुषत्व
का प्रयोग वहाँ कर ही आता । गाली देने वाला सामने वाले पुरुष को यह मान कर चलता है
कि वह अपने घर की स्त्रियों की ‘यौन सुचिता’ का रक्षक है अतः वह उसकी इस भूमिका पर शब्दों
के माध्यम से हमला करता है । गाली देने वाले का सामाजीकरण अनोखा नहीं है बल्कि यही
सबका समाजीकरण है सब इसी तरह से सोचते हुए चलते हैं ।
सानिया
भाभी एक तरह से एक समय में प्रसिद्ध हुई सेक्स कार्टून ‘सविता
भाभी’
का रेडियो संस्करण प्रतीत होती है । जो सीधे शब्दों में पुरुषों को आकर्षित करने
वाले संवाद बोलती हैं ।
दो
महीने पहले जब दिल्ली छोड़ रहा था तो दिसंबर मे हुए बलात्कार के बाद स्त्री के
अधिकारों के पक्ष में गज़ब के प्रदर्शन चल रहे थे । तमाम जन-माध्यमों के द्वारा भी
इसके लिए मुहिम चलाये जा रहे थे । पर आज देखें तो यह बिलकुल दूसरी दुनिया की ही
बात लगती है । वहाँ केरल में था तो एक खबर सुनी थी कि एक रेडियो चैनल धड़ल्ले से
अपने आपको मर्दों वाला चैनल बता कर अपने को स्थापित करने की कोशिश कर रहा था । ये
सब उसी दिल्ली में हो रहा है जहां उस घटना के बाद स्त्री के प्रति संवेदना जागृत
करने के बहुत से प्रयास अपने अपने स्तर पर सभी चलाने लगे ।जिसको जहां मौका मिला
उसने वहीं से इसमे योगदान करने की कोशिश की । लेकिन ये सारे बदलाव जैसे कि मैं
पहले से मानता आ रहा था ऊपरी बदलाव थे । आज दिल्ली में जितने भी एफ एम स्टेशन चल
रहे हैं वे बड़ी पूंजी से संचालित हैं और ये बड़ी पूंजी एक ही साथ दो दो काम कर रही
है । एक तरफ तो उनके चैनल के माध्यम से बहुत अच्छी बातें की गयी मुद्दे को बहुत
तरीके से उठाया गया पर दूसरी ही तरफ अपने स्टेशन पर श्रोताओं को बांध कर रखने के
लिए बिना ज्यादा विचार किए ही ऐसे कार्यक्रम पेश करते हैं जो सीधे सीधे स्त्री को
उसी चौखटे में बांध देते हैं जो पुरुषवादी मान्यता के अनुरूप ही है ।
जर्मन
रेडियो स्टेशन डायचे वेले ने अपने बंद होने के उपरांत स्वयं को ऑनलाइन लाकर
श्रोताओं से संपर्क बनाए रखा । इसी कड़ी में उसने अपने फेसबुक पृष्ठ पर पिछले दिनों
एक प्रतियोगिता चलायी कि दिसंबर की उस घटना के बाद के प्रदर्शनों के पश्चात किस
प्रकार के परिवर्तन आए । एक भी प्रविष्टि ऐसी नहीं थी जो वास्तविकता को प्रदर्शित
करती हो । सबने उस घटना के बाद हुए परिवर्तनों को बहुत बढ़ा चढ़ा कर लिखा । उनके
आधार पर देखा जाए तो ऐसा लगेगा कि भारत से तो स्त्री के शोषण का सर्वनाश ही हो गया
। अब कहीं भी उसके यौन का मर्दन करने की घटनाएँ नहीं होती , पुलिस
हमेशा मदद करने के लिए तैयार है , घर में यौन शोषण खत्म हो गया । इस लिहाज से तो यह
आदर्श दशा आ गयी । किसी ने वह प्रतियोगिता जीती भी होगी पर क्या सचमुच ऐसा हो गया ?
दिल्ली
में एफ एम चैनलों के माध्यम से एक बहुत बड़ी आबादी का मनोरंजन होता है जिससे उन पर
निश्चित तौर पर एक बड़ी ज़िम्मेदारी आ जाती है जो केवल एक दो जगह रात को पहुँच कर
महिलाओं के सुरक्षा की जांच कर लेने भर से ही पूरी नही हो जाती । उस ज़िम्मेदारी के
मनोरंजन के समग्र तौर तरीकों से परिलक्षित होने की अपेक्षा है । जबकि एक तरफ
नितांत स्त्री विरोधी होकर जो संदेश ये एफएम स्टेशन दे रहे हैं वह निश्चित तौर पर
उनकी भूमिका को कटघरे में खड़ा करती है ।
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