आज
अपने जन्मदिन पर बात करते हुए इतना तो कह ही सकता हूँ कि मेरे लिए यह एक ऐसा विचार
है जो दिल्ली में शुरू हुआ और वहीं खत्म हो गया । कोई 2003 के साल की बात रही होगी
जब इसे मनाने की शुरुआत हुई थी । उससे पहले तक मेरा और जन्मदिन के मनाने का कोई
नाता दूर तक नहीं था । ऐसा भी नहीं था कि उस साल अचानक से यह शुरू हो गया हो ।
बल्कि उस से पहले के साल भर के दौरान कई दोस्तों और एक दो अग्रजों के जन्मदिन का
भोज खा चुका था तो उन भोजों के आभार के तौर पर मैंने भी अपने जन्म के दिन भोज दिया
। उस समय हमारा दायरा केवल और केवल बिहार और उसमें भी अपने शहर सहरसा से आए हुए
लोगों तक सीमित था सो कोई विधि –विधान नहीं बल्कि पर्याप्त से भी थोड़ी ज्यादा
मात्रा में बनाया गया मुर्गा – भात और कोई भी मिठाई , बस यही मायने थे हमारे
लिए जन्मदिन के । उस समय घर से खर्चे के लिए हर महीने के दो हजार रूपय मिलते थे और
जन्मदिन पर हुए खर्चे के बारे में बताया नहीं जा सकता था सो उन्हीं पैसों में
कतर-व्योंत करते हुए इस दिन खूब खाया जाता था । वह ठेठ बिहारी दौर था जब हम सब
बारीकियों के बगैर जीवन जीते थे । बिहारी कभी बारीकियों में नहीं जाता मसलन खाने
के साथ सलाद या 4-5 प्रकार की सब्जियाँ इस सब में अविश्वास रखने वाले लोग हैं हम ।
मांस मछली खाने बैठ गए अन्य राज्यों के लोगों को देखता हूँ बिना सलाद के खाएँगे ही
नहीं पर हमारे यहाँ सब चलता है और बहुत हुआ तो प्याज ले कर बैठ गए । वह प्याज भी
किसी विशेष आकृति में काटा हुआ नही बल्कि किसी भी तरह खा लीजिये – कभी
थाली के किनारों से काटकर तो कभी हाथ से ही तोड़कर , न हुआ तो साबुत प्याज में
ही मुह लगा दिया । इससे एक किस्सा याद आया हमारे एक मित्र बिहार लोक सेवा आयोग की
परीक्षा देने समस्तीपुर की ओर गए थे वहाँ उनकी सलाद की फरमाइश पर उन्हे 4 टुकड़ों
में काट के प्याज पकड़ा दिया गया । मित्र गोरखपुर के हैं और जब भी बिहार के बारे
में कुछ बोलना हो तो इसका जिक्र जरूर करते हैं । मेरे उक्त मित्र या कि कोई और इस
बारीकी के अभाव को अपने हिसाब से या एक सामान्य व्यवहार के हिसाब से देखते हैं पर
हमारा यह असामान्य व्यवहार हमारे अभावों की देन है और अभाव से बड़ा समाजीकरण का
औज़ार कोई नहीं है ।
बहरहाल
वो तीन चार साल ठेठ बिहारी जीवन के साल थे । मुझे वो बेफिक्री अभी भी बहुत प्यारी
लगती है पर उन संगियों के दिल्ली से चले जाने के कारण चाहकर भी उसमें नहीं जाया जा
सकता ।
सहरसा से आए हुए दोस्त वापस लौटना शुरू कर दिए
थे जबकि मैंने दिल्ली में रुककर ही एम ए करने का मन बनाया । फिर ऐसे जैसे कि अपने
शहर के मेरे दोस्त एक एक कर चले गए और उनका स्थान एमए के दोस्तों ने ले लिया ।
2008 का साल एक ऐसा साल था जब मेरे जन्मदिन पर सहरसा के दोस्तों के साथ- साथ
एमए के दोस्त भी शामिल थे । उसके बाद जीवन
बहुत तेजी से बदला फिर और नए दोस्त जुडते गए । फिर जन्मदिन मनाने के रस्मों के
बारे में पता चलता गया । फिर एक जन्मदिन वह भी था जब उसमें केक भी लाया गया था ।
आप किसी चीज से परिचित हों तो उसका प्रयोग करने में कोई झिझक नहीं होती पर जब आप
उससे अपरिचित हों तो अजीब लगता है । केक काटने के मामले में मेरा भी यही हाल था ।
इसलिए मैंने एक बहाना गढ़ लिया कि हमारी परंपरा में जन्मदिन के किसी चीज को काटना
एक नकारात्मक विचार है जो पसंद नही किया जाता । और यकीन मानिए मैं अपनी इस युक्ति
से पिछले साल तक केक काटने से बचा रहा । जबकि हमारे यहाँ जो लोग अपने बच्चों का जन्मदिन मानते हैं और यदि
उनके पास बकरे खरीदने के पैसे हैं तो उसकी दावत जरूर देते हैं ।
पिछले साल का जन्मदिन बहुत से मानों में अलग
था । शायद इसलिए कि हम सब को पता था कि दिल्ली में मेरा ये अंतिम जन्मदिन है ।
नवोदय विद्यालय समिति का परिणाम तो इस साल आया पर DRDO का परिणाम तो पहले से ही
आ चुका था सो लगभग सभी मित्र आए थे । उनमें से कुछ के आने की उम्मीद मुझे भी नहीं
थी । आज उस बात को साल भर हो गए हैं मैं यहाँ केरल में अकेले बैठा हूँ । जैसा कि
मैं पहले भी कह चुका हूँ कि मेरा जन्मदिन मेरे परिवार में कभी नहीं मनाया गया था
और यह किसी और ही रूप में शुरू हुआ था इसलिए इस दिन को लेकर कोई विशेष कल्पना आदि नहीं
रही । लेकिन आज बार – बार यह एक तरह की रूमानियत में डाल दे रहा है । बार बार फोन
की ओर देखना और नहीं तो फेसबुक खोलकर देखना । दो तीन बार तो दिल्ली वाला सिम कार्ड
भी लगा कर देख लिया है कि उस पर तो कोई ट्राई नहीं कर रहा ।
दोस्तों
का गले लगते हुए जन्मदिन की बधाई देना बहुत याद आ रहा है । यहाँ आज मेरा जन्मदिन
मेरे तक ही सीमित है पर दिल्ली में आज का दिन मेरे दोस्तो के जीवन में पूरी दखल की
शक्ल में रहता था । अपना ग्रुप उधर बहुत बड़ा था और जाहिर है इतने बड़े ग्रुप में हर
किसी की हर किसी से बन नहीं सकती । और इसका नतीजा ये था कि मेरे जन्मदिन के अलावा
ऐसा शायद ही किसी का जन्मदिन रहा हो जहां सभी इकट्ठा हुए हों । और लगता है कि अब
यह इकट्ठा होना रुक जाएगा ।
आज
यहाँ विद्यालय में 12वीं के छात्रों की विदाई है सो खाने पीने का उत्तम प्रबंध है और
खाकर मजा भी आया सो इस मामले में निराश नहीं हुआ पर दोस्तों के बीच आज विशिष्ट बन
के घूमना नहीं हो पाया ।
दिल्ली
में किसी साल आज के दिन ही आरंभ हुई एक बात का अंत किसी को पता लगे बिना पिछले साल
आज ही के दिन हो गया । ऐसा नहीं है कि हम सब दोस्त फिर से नहीं मिलेंगे पर मेरे
जन्मदिन पर तो पक्के तौर पर नहीं मिलेंगे ।
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