अक्तूबर 13, 2011

माँएं हमारे आसपास

कबूतरों की आवाज से उनके भावों का पता नहीं चल पाता और उनके तो आँसू भी नही आते जो उनका दर्द दिखा दे ! यही कारण है कि इन्हें मैंने हमेशा एक सा ही देखा है । मेरी रसोई की खिड़की बाहर खुलती है उस दिन उस के पल्ले पर एक कबूतर बैठा था ठीक उसी तरह जैसे पहले बैठा करता था । रसोई में घुसते ही लग गया आज कुछ तो बात है, नहीं तो मेरी आहट पाते ही तो ये फुर्र हो जाते थे ! खाना बनाते नहाते पता चल ही गया । उस कबूतरी का बच्चा सामने के घर के भीतर रह गया था । दरअसल उसने अपना अंडा वहीं दिया था और अब उसमें से चूजा भी निकल आया और किस्सा यूँ हुआ कि पड़ोसी अपने घर में ताला लगाकर रविवार को सार्थक करने चले गए लोहे का जंगला और बाथरूम भी बंद ! जब दिन कुछ चढ़ा तो कबूतर माँ की बेचैनी बढ़ने लगी कभी उड़ कर जंगले में लटक जाती तो कभी रोशनदान के रास्ते बंद बाथरूम में चक्कर लगा आती । वह बड़ा बेचैन दिन था !
अभी कल हमारी गली की कुत्ता माँ ने 6-7 बच्चे दिए हैं । पिल्लों की कमजोर कूं कूं बड़ा मनमोहक सा स्वर प्रस्तुत करती है । और कभी आकर देखिए इस माँ को कितनी तल्लीन रहती है कभी बच्चों को दूध पिलाने में तो कभी उन्हें सुरक्षित स्थान पर रखने में ! और यह सब होता है इसी गली की सीमा में । पर इस बीच बाहर के लोगों और कुत्तों का प्रवेश वर्जित हो गया है । अगर किसी ने इस निषेधाज्ञा का उल्लंघन किया तो वो शोर मचता है साहब की मत पूछिए ! इसी से काली याद आ रही है ! हम जहाँ पहले रहते थे वहीं उसी गली में दौडती , खाती और पसर के सोती थी । आम दिनों में वह भी मादा कुत्ता ही थी पर जैसे ही बच्चे देती हर किसी का उस गली से चलना दूभर हो जाता ! ऐसे ही किसी समय में उसने मुझे भी दौडाया था मैं नाले में जा गिरा !
इन माँओं को सोचते हुए मुझे अपनी माँ याद आ रही है छोटी सी बूढ़ी होती हुई !
एक बार माँ मुझे मामी के पास छोड़कर पिता और छोटे भाई के साथ एक शादी में गयी । वहाँ उन्हें कुछ दिन रुकना पड़ गया । मामी के यहाँ मैं एक बच्चे की तरह ही रह रहा था पर दिन में कई बार यह महसूस हो जाता था कि मैं किसी और खा बच्चा हूँ । इस बीच मेरे पैर में एक घाव हो गया - बरसाती घाव सा पर आज भी याद है बहुत तेज दुखता था । जब मेरी माँ वापस लौटी तो घाव लगभग ठीक हो गया था । माँ को देखते ही मैं जार जार रोने लगा । मामी ने रोने का कारण पूछा तो मैंने बताया कि घाव दुख रहा है ।
माँएं हमें जीवन ही नहीं देती बल्कि रोने के लिए आसारा भी देती है ।
एक तरह से देखा जाए तो मुश्किल हालात को झेलने और कुछ न कर पाने पर रोकर सबकुछ बाहर निकाल देना भी वही सिखाती है । कोई भी माँ हो वह बहुत कुछ झेलती हुई जीती है और सभी उन छिपे हुए कोनों में रोती भी हैं !

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