अक्तूबर 05, 2011

शिक्षा के नाटक में बलि के बकरे !

शाम का समय : दिल्ली का एक बस स्टाप स्कूल के कपड़ों में बहुत से बच्चे खड़े हैं । बस आती है पर रुकती नहीं ... बच्चे बस की ओर लपकते हैं पर कोई फायदा नहीं । ये हार कर लौट ही रहे हैं कि लोगों देखा इस स्टाप और अगले स्टाप के बीच गाड़ी रुक गयी है कुछ बच्चे फिर से बस के पीछे भागते हैं तब तक बस निकल जाती है अगले स्टाप को भी छोड़ कर - क्योंकि वहाँ भी स्कूल के बच्चे हैं!
लौटे हुए बच्चे अपने में मस्त हैं और बस नहीं पकड़ पाने की मायूसी से बेखबर भी । पर, अन्य यात्रियों के द्वारा कोसे जाने की आवाजें तो उन तक भी पहुँचती है-इन आवाजों में गालियां, शाप और उन बच्चों को बेकार साबित करने के तमाम तत्व हैं ।
तभी कोई गाड़ी आ कर रुकती है सब एक दूसरे पर चढ़ कर उसमें ठुंसने की कोशिश करने लगते हैं! बस में ज्यादातर स्कूली बच्चे ही चढ़ पाते हैं क्योंकि उन्होंने ही सड़क के बीचोबीच खड़े होकर चालक को बस रोकने के लिए मजबूर किया और सबको छका कर चढ़ भी गए । जो यात्री नहीं चढ़ पाए वे पुन: बच्चों को कोसने लगे पर अब इन्हें कौन सुनता है! इस समय हर बस में कोहरा ही मचा रहता है आगे बढ़ो गेट बंद होने दो आदि फिर छोटी मोटी झड़प भी । यहाँ भी उन स्कूली बच्चों को कोई राहत नहीं है वे सारे लोग जो इस उम्र को पार कर गए फब्तियाँ ही कस रहे हैं ।
बस स्टाप या बस में दोनों जगह बच्चे ही गलत साबित कर दिए जाते हैं ।
हर शाम एक बस स्टाप नहीं बल्कि हर बस स्टाप का और बस के भीतर का भी यही दृश्य है । और हमारे पास न आँकड़े हैं और न ही तरीके कि विद्यालयों से निकल कर अपने घर पहुंचने की जद्दोजहद में कितने ही बच्चों को चोटें लगती है और कितनों की मृत्यु भी हो जाती है ।
सरकार के पास बच्चों के घर के आसपास स्कूल देने की कोई व्यवस्था नहीं है तभी सीमापुरी के एक बच्चे का नाम डायरेक्टरेट की कृपा से माडल टाउन के स्कूल में आता है । सरकारी विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चों के माता पिता के पास बच्चे को स्कूल से लाने ले जाने का कोई विकल्प नहीं होता है ।
शिक्षाशास्त्री और नीति बनाने वालों के लिए ये बच्चे कोई मायने नहीं रखते क्योंकि ये देश से बाहर के कर्जदारों को दिखाने के लिए रजिस्टर की एक इन्ट्री भर हैं !
ऐसी शिक्षा किस काम की जिसमें कदम कदम पर जोखिम और दुत्कार है साथ ही यह शिक्षा एक मजदूर से ज्यादा कुछ बनने की गारंटी भी नहीं देती ।

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