मई 05, 2013

रैयतें भेड़-बकरियाँ और नफरत के फसल की रोटी



आज के अखबार के पहले पन्ने पर आधे पेज का एक विज्ञापन है सहारा इंडिया के भारतीय भावना दिवस के आयोजन का । किसी भी खबर से पहले इसी पर नजर पड़ी । यहाँ सहरसा में ये आधे पन्ने का विज्ञापन है पर यहाँ से बाहर बहुत सी जगहों पर यह विज्ञापन पूरे पन्ने का भी होगा । इस विज्ञापन का मजमून कुछ इस तरह का है कि एक आयोजन होगा जिसमें राष्ट्रगान गाने का विश्व रिकॉर्ड बनाया जाएगा जिसमें कई लाख लोगों के द्वारा इस कर्मकांड की पूर्ति किए जाने की संभावना जताई गयी है , और तकनीक के इस दौर में उसका भी सहारा लेकर जो जहां है उनसे वहीं से अपने वीडियो भेजने के आशय का आग्रह इसमे किया गया है । कहा गया है कि इसके माध्यम से एक अविश्वसनीय रिकॉर्ड बनेगा । और सबसे जरूरी बात जो सबसे ऊपर लिखी है –वर्तमान में 42813 नागरिकों के शामिल होने का रिकॉर्ड पाकिस्तान के नाम है

अब सोचिए कोई तीन करोड़ (3,0000000 संख्या में लिखना जरूरी है ) लोग हैं जिनके चौबीस हजार (24000) करोड़ रूपय इसी सहारा इंडिया को लौटाने हैं । इसके बाबत कई तरह के मामले अदालतों में चल रहे हैं कुछ में तो रूपय न लौटाने की दशा में इनके खातों को सील करने के आदेश आ चुके हैं । व्यापार और अर्थशास्त्र की गूढ बातों का नहीं पता लेकिन तीन करोड़ लोगों के उन रुपयों की देनदारी जिसके कंधों पर है वह इससे बचने की जुगत में है । कितनी ही बार बार सेबी ने सहारा से पैसे लौटाने को कहा है । एक सबसे रोचक बात देखने को मिलती है कि जब सहारा से संबन्धित कोई केस सुर्खियों में आता है तो झट से सहारा का भावुक विज्ञापन अखबारों में दाल दिया जाता है । ये विज्ञापन छविनिर्माण की बेहद चालाक प्रक्रिया के तहत बनवाए जाते हैं जिसमें बार बार यह दिखाने की कोशिश रहती है कि भारत और इसके नागरिकों का असली शुभचिंतक सहारा ही है । याद आता है बीसीसीआई-सहारा विवाद जिसमें सहारा को क्रिकेट टीम का प्रयोजन नहीं मिला था । अगले ही दिन अखबारों के पहले पन्ने पर पूरे पृष्ठ का विज्ञापन था । उसका आशय था कि सहारा प्रयोजन न मिलने से दुखी है अब वह इसकी भरपाई देश में अन्य खेलों के विकास के लिए भारी रकम खर्च करेगा । इसमें स्थानीय स्तर पर भी पैसे खर्च करने की बात की गयी थी । इस बात को दो साल के आसपास होने चले हैं पर इस बाबत कोई खबर पढ़ने को नहीं मिली हाँ कागजी तौर पर यदि ऐसा हो रहा हो तो बात अलग है । हाल के विवाद के के बाद भी सहारा का विज्ञापन आया था जिसमें निवेशकों से धैर्य रखने की अपील थी और कर्मचारियों से सहयोग करने को कहा गया था । वह विज्ञापन भी भावुकता के चरम को छू रहा था ।

खैर यह इस तरह का बड़ा समूह हो लेकिन अब इन कारनामों में यह अकेला नहीं रह गया । निवेश की प्रकृति जो भी हो और पैसे जिस भी तरह से लौटाने की बात की गयी हो पर हाल ही पश्चिम बंगाल में भी निवेशकों के ठगे जाने की बात सामने आई है । यह मामला भी बहुत बड़ी रकम का है और हाई -प्रोफाइल  है । अभी कल ही यहाँ अखबार के पृष्ठ 5 पर बहुत ही अपठनीय प्रिंट में एक छोटी-सी आम सूचना छपी थी जिसमें किसी वियर्ड इंफ्रास्ट्रकचर कोरपोरेशन लिमिटेड के हवाले से यह कहा गया था कि प्रिय ग्राहक आपकी राशि सुरक्षित है और कुछ विभागीय जांच चल रही है इस परिस्थिति में सहयोग व विश्वास बनाए रखें । अगले ही पृष्ठ पर किसी रोज वेली संस्था की ओर से एक आवेदन दिया गया है जिसमें कहा गया है कि राज्य में एक विशेष आर्थिक संस्था द्वारा घोटाले को लेकर राज्य में अस्थिरता पैदा हुई है । हम हर तरह की जांच के लिए तैयार हैं । ... हम राज्य सरकार , सभी राजनीतिक दल , पुलिस प्रशासन , मीडिया बंधुओं से सहयोग की अपील करते हैं । .... हम सभी फील्ड कर्मियों से , कर्मचारियों और ग्राहकों से निवेदन करते हिन कि हम पर भरोसा रखें और अपना धैर्य बनाए रखें

कहना यह है कि इन सभी अपील’, आम सूचना’, आवेदन आदि में कंपनी के नाम अलग अलग हों पर उनकी भाषा एक समान ही है और जो कथ्य है वह भी एक ही है । जब सभी कंपनियाँ पाक साफ ही हैं तो निवेशकों के पैसे क्यों नहीं मिल रहे हैं , जब जनता का धन सुरक्षित है तो इतना बखेड़ा क्यों हो रहा है , मामले अदालतों में जा रहे हैं और अदालतें आदेश पर आदेश दिए जा रही हैं फिर भी नतीजा सिफर ही क्यों है ?

ऐसी अवस्था में सहारा इंडिया कुछ लाख लोगों से राष्ट्रगान गवा कर क्या साबित करना चाहती है यह बहुत स्पष्ट है । यह उसकी उसी भावनात्मक ब्लैकमेलिंग की अगली कड़ी है जिसमें वह खुद को ऐसे पेश कर रही है जैसे कि कंपनी को नाहक ही इसमें फंसाया और प्रताड़ित किया जा रहा है । और वह जो कर रही है उसमें जनता की ही भलाई छिपी है । अन्यथा अभी इस रिकॉर्ड को बनाने की कोशिश करने का क्या तुक बंता है यह समझ से बाहर है ।

राष्ट्रगान के रिकॉर्ड बनाने की जरूरत ही क्या है ! इस का सम्मान होना चाहिए पर इसका इस्तेमाल नहीं । खास तौर पर यह देखना होगा कि यह कब आयोजित किया जा रहा है और इसमें किसके रिकॉर्ड को तोड़ने की बात की गयी है । एक भारतीय कैदी की पाकिस्तान के जेल में बुरी तरह से पिटाई होती है परिणामस्वरूप बाद में उसकी मृत्यु हो जाती है । जिस तरह से मीडिया ने पेश किया और उसके बाद हिन्दू संगठन और सामान्य लोग भी प्रतिक्रिया दे रहे हैं उस समय को अपने लिए भुनाने का इतना सुनहरा अवसर सहारा को बाद में नहीं मिलता । इस समय सहारा को अपने छवि निर्माण की सख्त जरूरत है । यह छवि निर्माण राष्ट्रियता के माध्यम से ही मिलेगा इसकी पहचान सहारा को है जो उसके हर विज्ञापन में दिखती है । कारगिल की लड़ाई के दौरान भी यह खूब देखा गया । सहारा ने उस साल अपने शेर वाले केलेंडर बहुत बांटे थे भावनात्मक टिप्पणी के साथ ।

 एक मित्र ने फेसबुक की अपनी दीवार पर कहा कि पाकिस्तान में भारत की तुलना में ज्यादा नफरत है जबकि विभाजन भारत ने भी सहा है । कहने को जो भी कहा जाए पर भारत में पाकिस्तान के प्रति नफरत रत्ती भर भी कम हो यह नहीं कहा जा सकता । लाल किले के कवि सम्मेलन से लेकर किसी भी मुसलमान को देखते ही उसे पाकिस्तानी या गद्दार समझ कर चलने तक हम इसे देख सकते हैं । हमारा फिल्म उद्योग इस नफरत को कितना बेचता है इससे भी अंदाजा न लगे तो क्या किया जा सकता है । कुछ और नहीं तो मुसलमानों को कट्टर माने की धारणा तो किसी से छिपी नहीं है फिर किस तरह से नफरत के कम होने की बात करते हो ? जब मेरा नवोदय में चयन हुआ तो मैं घर आया था । माँ ने मेरे मित्र ज़ाहिद के चयन के बारे में पूछा तो मैंने बताया कि उसका नहीं हुआ और उसका चयन होना चाहिए था । माँ को भी दुख हुआ पर वहीं मेरे एक मामा बैठे थे छुटते ही कहते हैं भने नई भेले सार मियां के ! मियां कट्टर होई छै (साले मियां को भले ही नहीं हुआ ! मियां कट्टर होता है ) । मामा अपनी कट्टरता भूल गए । इस तरह की कट्टरता की बातें ज़ाहिद भी खूब कहता है । दसवीं की परीक्षा के समय वह अपने किसी हिन्दू मित्र के यहाँ ठहरा था । वह बताता है कि उसकी थाली में खाना काफी ऊपर से परोसा जाता था सबसे हद तब होती थी जब दाल गिराई जाती थी । दाल छिटक कर पूरे बदन पर फैल जाती थी । यहाँ यह कह देना कि मुसलमानों से नफरत पाकिस्तान के प्रति नफरत से अलग है सही नहीं है । यह सही कि भारत में लंबे समय से मुसलमानों के प्रति नफरत कायम है पर विभाजन हो जाने और पाकिस्तान के बन जाने से मुसलमानों को पाकिस्तान का प्रतीक मान लिया गया । नहीं तो सुदूर इलाकों में जाकर आप देख लीजिए कितने लोग मुसलमानों का संबंध इन्डोनेशिया से जोड़ते हैं और कितने पाकिस्तान और बांग्लादेश से । और यह नफरत नहीं तो और क्या है कि जब एक भारतीय कैदी मारा तो उसी तरह की हरकत हमारे भी देश में हो गयी । इसे महज इत्तिफाक़ मासूम से मासूम व्यक्ति भी नहीं कह सकता ।
ऐसे समय में पाकिस्तान के नाम एक रिकॉर्ड को तोड़ने के लिए सहारा का अभियान अकारण नहीं जान पड़ता । ये उसकी चालाकी है और हमारी बेवकूफी कि हम इसे साझे बिना इसके होने में भूमिका निभाने की पूरी तैयारी कर रहे हैं ।

यह हमारे ही देश में हो सकता है जहां इतने लाख लोग उसी सहारा के खिलाफ निवेशकों के पैसे लौटाने के लिए खड़े नहीं हो सकते लेकिन एक निरर्थक से रिकॉर्ड के लिए ऐसा जरूर करेंगे । यहाँ कोई अपराधी भी आपको जाती से बाहर शादी न करने के लिए अनैतिक करार कर सकता है । हम जीतने कट्टर और दकियानूस हैं उतना मुश्किल से कोई समाज हो सकता है । हम बनावटी बातों के चश्मों से दुनिया देखने के आदि हैं जिससे असली बात नहीं दिखती । 

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