बड़ी
तसल्ली से हम अब प्रचार देखते हैं और ये तसल्ली आँखों पर चित्र तो बनने देती है पर
उसे भीतर नहीं गिरने देती ।
कई बार मैं क्षुब्ध हो जाता हूँ और वह क्षोभ जब जाहिर होता
है तो कोई न कोई कह ही देता है कि मुझे ही इतनी समस्याएँ दिखती हैं । अपनी तरह का मैं
अपने पास एक दो ढूंढ लूँ तो बहुत बड़ी बात है । बाहर जो लोग हैं उन्हें मैं व्यर्थ का
शोर मचाता जीव नजर आता हूँ । अपने मित्रों को भी ।
अभी
बहुत दिन नहीं बीते राष्ट्रमंडल खेलों के । उदघाटन हो रहा था उन खेलों का । एक मित्र
ने तभी तभी अपने फेसबुक की दीवार पर उन खेलों के विरोध में कुछ लिखा था ... नीचे कथन
पे कथन आने लगे थे जिनमें प्रशंसकों के ज्यादा थे ,
बस मैं और स्टेटस लिखने वाला दोस्त खेलों के विरोध में थे । बाकी लोगों ने उस दिन हम
दोनों की बहुत मज़म्मत की थी । उनकी भाषा तक स्तरहीन नहीं रह गयी थी । जैसे हमने राष्ट्र
की संप्रभुता पर केवल यह कह कर सवाल उठा दिया हो कि उन खेलों पर खर्च की गयी रकम को
यदि देश की गरीबी दूर करने में किया गया होता तो बढ़िया होता साथ ही यह भी कि उसमें
कुछ भ्रष्टाचार को भी देखने का प्रयास किया था । बहुत खतरनाक तरह से डांटा था हमें
लोगों ने । फिर जैसे दृश्य बदला हो या फिर उनके लिए एंटी क्लाइमेक्स जैसा हुआ हो ,
एक साथ कितने ही लोग उन खेलों के दौरान गड़बड़ी के आरोपों में जेल गए । बड़े से बड़े तक
। हाल ही में मित्र के उस स्टेटस पर मैंने यूं ही कुछ खुराफात वश उन कथनवीरों को ललकारा
था । अपेक्षित रूप से ही कोई नहीं आया ।
श्रीसंत
को उसके एट्टीट्यूड के लिए मैं बहुत पसंद करता था । उसका आँख में आँख डालकर जवाब देने
का अंदाज गांगुली युग की अंतिम पहचान जैसा लगता था । हाल में वो जेल गया । हालांकि
जिस मामले में वह जेल गया उसके कर्ता-धर्ता कोई और ही लोग हैं और कितने ही और जेल जाने
की योग्यता रखते हैं लेकिन इससे श्रीसंत का अपराध कम नहीं हो जाता । जितना दुख उसके
बीसीसीआई की टीम में शामिल नहीं होने पर होता था उससे ज्यादा उसके द्वारा की जाने वाली
सट्टेबाजी से हो रहा है । जबकि यह भी एक तथ्य है कि सट्टेबाजी केवल इन्हीं कुछ लोगों
के द्वारा नहीं किया गया बल्कि कई कई मगरमच्छ हैं । पर इससे श्री का काम कम नहीं हो
जाता । उसने अपनी ही उस छवि को तोड़ा जो आन्द्रे नेल की गेंद पर छक्का लगा कर बैट लहरा
कर बनाई थी ।
आमिर खान आज कल गोदरेज का एक एड कर रहे हैं । वे और गोदरेज मिल कर
बहुत सा समान बेच रहे हैं । फिलहाल तो वे एक लॉकर बेच रहे हैं । जरा सेट-अप देखिये
। एक तिजोरी है एक तरफ आमिर खान धनाढ्य युवा बने हुए हैं पास ही खड़ा है एक गार्ड ।
यहाँ आमिर आदरणीय हैं और गार्ड ताड़नीय । आमिर दबाव डालकर उस गार्ड से लॉकर खुलवाने
की कोशिश करते हैं । प्रयास होते ही धनाढ्य युवा बने आमिर के मोबाइल पर संदेश आ जाता
है । अब आमिर गार्ड को पुलिस के पास ले जाने की बात करते हैं । सच्चाई को कितनी सहजता
से दिखा दिया है आमिर और उनकी टीम ने । साथ ही दृश्य में वह पूर्णता भी नजर आती है
जिसके लिए वे जाने जाते हैं । धन और उसे धारण करने वाला \ ऐसे किसी को भी जिसके पास
धन नही है उसे चोरी के आरोप में पुलिस के पास ले जा सकता है । कितना मौलिक सोचते हैं
आमिर खान ! क्या जरूरत है आमिर को गार्ड के
बदले किसी अपने जैसे किसी और को चोरी की नकल करवाने की जब काम समाज में व्याप्त रूढ़ियों
से चल जाता है ! तो क्या हुआ कि यह प्रचार गार्ड जैसे गरीब को चोर के रूप में प्रस्तुत
कर्ता है !
चलिये
इस पर भी लोग बहुत सारा कहेंगे । क्योंकि आमिर को पसंद करने वाले उनके खिलाफ कुछ भीं
नहीं सुनते न । यह भी नहीं कि ‘तारे जमीन पर’
मूलतः अमोल गुप्ते का था ! आखिर पैसे देने का भी कुछ मतलब है ।
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