जंगल आपको चकित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते ऊपर से जब मानसून हो तो कहना ही क्या । केरल का मानसून जंगल से लेकर रिहायशी इलाकों में भी वनस्पतियों की अबाध वृद्धि में भारी योगदान करता है । जो पहाड़ियाँ गर्मियों में सूखकर भूरी हो जाती हैं उन पर हरे रंग की अलग-अलग छटा देखने को मिल जाती है । तरह तरह एक फूल और जड़ी – बूटियाँ जो आम दिनों में देखने को नहीं मिलते उन्हें हर सौ मीटर पर बहते झरनों के साथ किसी ऊँचे पेड़ से टपकती बूंद के झटके से झूलती – झूमती मिल जाती हैं ।
कल की शाम जंगल के उस हिस्से की ओर जाना हुआ जिधर अक्सर कम जाना होता है । वह जंगल की बजाय उसकी शुरुआत है । वहाँ कभी कभी खाने की तलाश करते हिरण दिख जाते हैं । वहाँ एक सोता बहता है । उस ओर पहाड़ी की ऊंचाई बहुत नहीं है तो ढाल के सहारे बहते पानी को झरना नहीं कहा जा सकता । बेशक, कहीं कहीं पानी एक झटके में नीचे आ जाता है और उसकी चाल के साथ साथ आवाज़ भी बदल जाती है पर वह सोता ही है ।
मैं उस सोते के किनारे एक पत्थर पर बैठा था । मानसून के दिनों में पानी के सोतों के पास बड़ी ही सावधानी बरतने की आवश्यकता है । वहाँ मलाबार वाइपर किसी मेंढक या मछली की ताक में घात लगाए हो सकते हैं । अपनी सावधानी के मद्देनज़र बहते पानी की मधुर आवाज़ के साथ मैं इधर उधर भी देखता जा रहा था । वहीं एक फूल दिखा । फूल अकेला नहीं था बल्कि वे झुंड में खिले थे । फूलों के खिलने में क्या चौंकना ! फूल तो खिलते ही हैं !
उस फूल का शरीर अपनी ओर देखने के लिए विवश कर रहा था । एक लंबी तीली जैसे शरीर के ठीक छोर पर खिला फूल । न पत्ते, न डाली, न अन्य कलियाँ ! आधे बित्ते का यह पौधा एक अजूबा ही था । मैंने अपने देखे हुए पौधों में इस तरह का पौधा नहीं देखा था जिस पर केवल फूल ही खिला हो पत्ती – वत्ति कुछ नहीं । और फूल बेहद सुंदर । गुलाब की ऐसी कली के समान जो बस अब खुलने ही वाली हो । रंग भी आकर्षक । मैंने तस्वीरें ले ली ।
लौटने पर फूल के बारे में पता करने के लिए हाथ पाँव मारने की बारी आयी । पता चला कि इसे भुतहा फूल माना जाता है । विज्ञान के अध्यापक ने इसका वैज्ञानिक नाम बताया – एजिनेशिया इंडिका । नाम से ही स्पष्ट है कि यह भारतीय मूल का पौधा है और केवल मानसून में ही दिखता है । नमी वाले स्थान में सड़े गले पत्तों में यह पौधा पनपता है ।
फूल किसी खूबसूरत ऑर्किड की तरह और उगना किसी मशरूम की तरह ! असल में यह पौधा एक परजीवी है । स्थानीय लोग आयुर्वेद में इसका प्रयोग करते हैं । माना जाता है कि दाह और शरीर के भीतर जमा विषैले पदार्थों के उत्सर्जन में इसके सेवन से लाभ होता है । चूँकि यह फूल उष्णकटिबंध के कई देशों में पाया जाता है इसलिए अलग अलग जगहों की स्थानीयता में इसका शामिल हो जाना स्वाभाविक ही है । इस फूल के रस को चावल के आटे के साथ मिलाकर ‘कनोम डोक डिन’ नमक एक थाई मीठा बनाया जाता है ।
मेरे लिए पूरी तरह अनजान यह पौधा काफी रोचक निकला । इस परजीवी के कई उपयोग भी सामने आ गए लेकिन एक बात समझ नहीं आयी कि इसे भुतहा पौधा क्यों कहा जाता है ।
शायद इसके अचानक से निकल आने , बिना पत्ती और डालों का होने और केवल फूल भर होने से यह नाम पड़ा हो । कौन जाने ! पर कोई तो जानता होगा !
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