-ऐसा लगता है मोर तुम्हारा सबसे पसंदीदा पक्षी हो ।
-नहीं , दूसरा सबसे पसंदीदा पक्षी ।
हमारे बीच यह संवाद मिलने के तीसरे-चौथे दिन हुआ होगा । वह अपने कुत्ते को घुमाने आती थी और मैं दौड़ने । उसका कुत्ता कभी कभी मेरे साथ दौड़ता तो उसे बहुत खुशी होती । वह अपने कुत्ते का वीडियो बनाती और पुचकारते हुए उसे ‘गुड ब्बोय’ कहती । कुत्ता जल्दी थक जाता था । शायद गर्मी उसके थकने की वज़ह हो । उन दिनों महानगर में गर्मी बरसनी शुरू हो चुकी थी । सूरज निकलने के साथ ही दीवारें तंदूरी रोटी पका सकने लायक गरम हो जाती । (‘हम हशमत’ में कृष्णा सोबती का मियाँ नसीरुद्दीन भी तो कहता है कि असल नानबाई कुएँ में भी रोटी पका सकता है ।) पर जहाँ हम मिलते थे वह जगह दीवारों की हद से बाहर थी । वहाँ कुछ पेड़ थे , कुछ झाड़ियाँ एक टेढ़ी-मेढ़ी सड़क । जिसे ‘एनसीआर’ कहते हैं उसके ‘वैभव’ से कुछ ही किलोमीटर बाहर ऐसी जगह रेगिस्तान के बीचोबीच बहते मीठे पानी के सोते की तरह थी । कोमलता की जितनी कल्पना एक सुबह में भरी जा सकती है वह सब वहाँ मौज़ूद थे । लेकिन सबसे ज्यादा मुखर , दर्शनीय और अपनी ओर खींचने वाले मोर ही थे ।
मोरों को देखने के लिए मैं अपना दौड़ना छोड़ सकता था । एक दो दिनों में ही वह भी समझ गयी कि मैं मोरों की तस्वीरें लेने के लिए सही कोण तलाशता हूँ और उसमें वह सहयोग देने लगी थी । होता यह था कि आम तौर पर अपनी मालकिन से चिपका रहने वाला कुत्ता मोरों की ओर की ओर दौड़कर उन्हें उड़ने या छिपने पर मजबूर कर देता । उस समय की मेरी निराशा उसे दिख जाती होगी । बाद में यदि वह मोरों को खूबसूरत अंदाज़ में बैठे देखती तो मुझे इशारा कर देती और अपने कुत्ते को कसकर पकड़ लेती । उस तरह मैं मोरों की कुछ बेहद शानदार तस्वीरें ले पाया ।
वहाँ बहुत से मोर थे लेकिन अच्छी सुबह सबको चाहिए खासकर बीएसएफ़ की केंप के तंबुओं में पड़े पड़े गर्मी झेलते जवानों को । वे भी अपनी सफ़ेद ड्रेस में जॉगिंग करते हुए वहाँ से गुजरते थे । सफ़ेद टी शर्ट और चुस्त सफ़ेद निक्कर । उसके बाद जूतों तक बालों से भरे उनके पैर एकदम खुले हुए । वे पंक्तिबद्ध होकर दुलकी मारते हुए जाते । उनकी सारी कोशिश अपनी अधेड़ावस्था में भी ‘जवान’ कहलाने की लगती । उनके गुजरने से भी मोर इधर उधर उड़ने लगते थे । मुझे याद है उनकी कदमताल से एक मोर अचानक से घबराकर उड़ा और अपना वज़न न संभाल सकने की वजह से एक ठूँठ पर बैठ गया । उसके बैठते ही मैंने तस्वीर ले ली । हमारी ओर पीठ किए हुआ मोर राजसी ठाट के साथ मेरे कैमरे में आ चुका था । मैंने उसे बताया कि यह तस्वीर मुझे अपनी एक दोस्त की तस्वीर की याद दिला रही है । मेरी दोस्त ने फेसबुक पर अपनी तस्वीर लगायी थी । वह तस्वीर पीछे से ली गयी थी । उसकी साड़ी और बाल मिलकर मोर सा राजसी अंदाज़ दे रहे थे । पर साड़ी की भूमिका वहाँ ज्यादा थी ।
-मैं भी साड़ी पहनती हूँ पर कभी कभी ।
अब मेरे अंदाज़ा लगाने की बारी थी । मैं उसे साड़ी में अपने कुत्ते को घुमाते देखने लगा था । मैं और बहुत सी कल्पना कर सकता था लेकिन उसी वक़्त एक बाइक हमारे पास आकर रुकी । लड़के ने अपना मास्क हटाया और लगभग बदहवास सा बोल पड़ा
– आपने एक कुत्ते को इधर से भागते हुए देखा है ?
(क्रमशः)
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