बारिश आजकल उसी पहाड़ी से नीचे उतरती है जिसे गर्मियों में मैं रोज़ जलते हुए देखता था । बूंदों का संकुल उसकी हरीतिमा को ठीक उसी तरह ढँक लेता है जैसे शीशे वाले बाथरूम के धुंधलके से झाँकता कोई झिलमिलाता अक्स ! हर ओर एक पारभासी आलस ! ज़ाहिर और छिपा हुआ भी ! जीवन को इसी तरह होना होता है । यह तय है कि जिंदगी के एक एक हिस्से में मन को मलिन रखने और करने के कई साधन हैं, मौके हैं लेकिन उस मलिनता के पार भी जीवन ही है ।
इन दिनों बिस्तर उस महक को लिए रहता है जो अक्सर बंधे हुए बालों में छिपी रहती थी । याद है , एक बार मैंने मज़ाक में कहा था तुम्हें कि इस ओर महिलाएँ अपनी वेणी में मोगरे के सुगंधित फूल इसलिए बाँधती हैं कि बालों में बसी नारियल तेल की पुरानी गंध बेले के मादक मोह में मिलकर नशे सा चढ़ जाये !
‘मैला आंचल’ में रेणु एक जगह लिखते हैं – लड़कियों के गीले बाल नहीं छूने चाहिए पाप लगता है । सोचो, इस बारिश में हम घुस जाते... पानी तुम्हारे बालों के सहारे धार बनकर बहता मन के भीतर दूर-दूर तक फैले गाँवों में लगी आग बुझ जाती । रेणु कहाँ तक पाप लगने का हवाला देकर गीले बालों को छूने से रोक पाते!
हमारा अच्छा है न कि आसपास कोई अंबिका नहीं ! अंबिका को मल्लिका का बारिश में भीगना एक बार को सह्य था पर जब कालिदास साथ रहे तब ऐसा हो तो घोर कलह का कारण !
तुमने मुझे ‘न हन्यते’ पढ़ने को कहा था । अब तक नहीं पढ़ पाया । इसी बहाने किताब और तुम एक साथ दिखती हो जैसे उसे तुमने ही लिखा हो । अक्सर किताबों वाला प्रेम पढ़ते हुए उन जगहों पर मैं ठहर जाया करता हूँ जहाँ प्रेमी बिस्तर पर पड़े होते हैं और एक - दूसरे को अगली बार के लिए तैयार करने की जल्दी में प्रवेश किए बिना एक दूसरे को सुनते रहते हैं!
ऐसी किताबें कहाँ मिलती हैं !
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