1025 ईस्वी पूर्व एक शासक हुए जिन्हें बाइबिल वालों ने सोलोमन और कुरान वालों ने सुलेमान कहा । राजाओं के हिसाब से इतिहास लिखा जाता है । हमारे पास जो भी जानकारी है उसके हिसाब से सोलोमन या सुलेमान के बारे में बड़ी ही प्यारी बातें मालूम पड़ती हैं ।
माना जाता है कि वे मनुष्य ही नहीं वरन पशु – पक्षी , पेड़ - पौधे नदी पहाड़ सबको अपनी प्रजा मानते थे और उनके हित के लिए काम करते थे । इतना ही नहीं उन्हें पशु – पक्षियों की भाषा भी आती थी ।
एक बार वे अपने लाव-लश्कर के साथ जा रहे थे । उनके घोड़ों की टाप सुनकर राह पर चल रही चीटियाँ डर गयी । वे एक दूसरे से कहने लगी कि जल्दी से अपने–अपने बिल में चलो, फौज आ रही है । सुलेमान ने उनकी बातें सुन ली और अपने लश्कर को थोड़ी देर रुक जाने का आदेश दिया । फिर उन्होने चीटियों से कहा –
"घबराओ नहीं , मैं किसी के लिए मुसीबत नहीं हूँ , सबके लिए मुहब्बत हूँ। चींटियों के जाने के बाद सोलोमन की फौज आगे बढ़ी" ।
यह राजशाही का किस्सा है जहाँ सबकुछ शासक के हाथ में ही रहता है , वह जो मन आए सो कर सकता है । सोलोमन जैसे राजा कुछेक होते हैं बाकी वही क्रूर और मनमर्जी चलने वाले । जनता का शासन होने के बाद भी शासकों की मनमानी करने की प्रवृत्ति नहीं बदली ।
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