बारिश बहुत खूबसूरत होती है बस उसका हुस्न देखने की फुर्सत हर रोज़ नहीं मिलती । इधर तो जब भी नींद खुलती है बारिश की आवाज़ ही सुनाई देती है लेकिन उसे महसूस करने के बजाय भाग भागकर धंधे पर जाने की तैयारी में लगे होने के कारण कुछ भी देखना और आत्मसात कर पाना मुश्किल हो जाता है ।
हाँ कभी कभी बारिश ने यूं भी दीवाना किया था कि मैं चलती कक्षा रोककर खिड़की से बाहर देखने लगता , कुछ बच्चे भी ऐसा करते , कुछ उस अंतराल का उपयोग कुछ सेकेंड की नींद के लिए करते । अब तो दौर ही बदल गया ।
यहाँ की बारिश तो यूं है कि कोई लगातार पकौड़े तैयार रखे बस । कुछ भी गरम पीने या पकड़ने से अलग ही सुकून मिलता है । हाँ कपड़े देर से सूखते हैं । छाता अभिन्न अंग बन चुका होता है शरीर का । छाते की जरूरत ही इतनी पड़ती रहती है कि आप उसे कहीं छोड़ ही नहीं सकते ।
मैंने अपना बिस्तर जिस कमरे में लगा रखा है उससे सामने की पहाड़ी साफ दिखती है । दो बड़ी बड़ी खिड़कियाँ किसी बड़ी स्क्रीन की तरह एक भव्य नज़ारा सामने बनाए रखती है ।
बारिश जब भी आती है उसी पहाड़ी की ओर से आती है । बूंदों का संकुल पहाड़ी की हरीतिमा को अपने धुंधलके से ढँक लेता है ठीक उसी तरह जिस तरह कोई सुंदरी किसी शीशे वाले बाथरूम में नहा रही हो और दीवारों पर जमी पानी की बारीक बूंदों में उसका झिलमिलाता सौन्दर्य खुलता हो ।
आती हुई बारिश को यूं महसूस कर सकते हैं यहाँ । ऐसे बचपन में देखा करता था
जब नानी गाँव में पूरब की ओर बसे रामपुर गाँव से बारिश आती दिखती थी ।
रामपुर के ऊपर के क्षितिज पर काले होते बादलों को भी खूब देखा था । आती हुई
आँधी भी दिख जाती थी । तब बहुत वक्त हुआ करता था और सामने उतना ही खाली
स्थान भी कि दुनिया, प्रकृति को वेश बदलते हुए देख सके ।
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