कुछ याद कवितायें
1
एक शाम का धीरे धीरे गिरना
हवा में नारियल तेल के जलने की गंध
कम होती रोशनी में भी चमकता लाल फूल
यहीं देखा है -उन आँखों सा सुंदर ...
पेरियार के किनारे बार बार जाना
उस भरपूर साथ की नरमी जैसा है
सीढ़ियाँ चढ़ते -उतरते
शाम की हवा
कानों पर तुम्हारी हल्की फूँक सी
गुदगुदी वापस भर देती है
नजरें टिक जाती है नदी के बदन पर
उम्मीद में
तुम आओगी नदी के रास्ते ही
अभी अभी नहाकर निकली सी
यह चमत्कार अब तक नहीं हुआ
वापसी में कदम सुस्त ही होते हैं .....
2
यह मैदान में पड़ी एक रात है
पीछे स्कूल की पीली-सरकारी-मातमी रोशनी
उससे भागना इसलिए भी जरूरी था कि
उसमें दम तोड़ती है मुस्कान ,
वहाँ किसी की याद नहीं आती
अंधेरा वो रस्ता है
जहां तुम्हें रोक सकता हूँ
कह सकता हूँ - दो-चार कदम और चलो
फिर थाम लूँगा तुम्हारे कदम
कुछ पोशीदा बातों के बाद
तुम्हारी वापसी का रस्ता यही होगा
मालूम है ये अंधेरा भी धोखा है
पर ये सच है
अबकी मिलेंगे तो
कुछ यूं भी मिलेंगे हम -
रोशनी में छिपकर , अंधेरे में खुलकर ...
3
शब्दों की धार के बीच हमतुम
डूबते से बहे जा रहे हैं
जैसे साँप से खेलता बच्चा
ये जो इतने चेहरे हैं
सब पर दिखता है
तुम्हारे चेहरे की छांह और
होठों का गहरा रंग
जल्द से जल्द छीन लेने का अधैर्य
बावजूद इसके
पलकें, तुम्हारी पलकों पर ही
गिरकर लेती है एक भरपूर आराम ... ।
तुम कहती हो ' अभी नहीं एक और कोशिश करेंगे '
पीछे के लोग पीछे हैं पर ठहरे तो नहीं
आखिर तुम भी इसी देश में हो
जहां लड़कियां बैंक में बड़ी होती हैं
शहर छोडने से पहले
मिलना चाहिए था तुमसे
इसे समय पर छोडते छोडते
टालते जाने की आदत बन गयी है मेरी
अपने दरम्यान
कितनी डरपोक कमजोरियाँ है
जो लाचार कर जाती हैं ....
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