ऐसा दूसरी बार महसूस किया था
! दुर्घटना इतने करीब हुई थी । घटना या दुर्घटना के प्रति संवेदना का स्तर उससे दूरी
या नजदीकी से तय होता महसूस किया ।
पहली बार जब ऐसा हुआ था तब
वह जाड़े की एक सुबह थी । सहरसा को बड़ी रेल लाइन से जोड़ा जा रहा था इसलिए उसका रेल संपर्क
लगभग कटा हुआ ही था । छोटी लाइन पर दिन में एक बार कोई गाड़ी चलायी जाती थी । बीच बीच
में कोई इंजन यहाँ से वहाँ चला जाए तो अलग बात है । इसी मुतमयीनी में उस सुबह कुछ लोग
सहरसा की ओर आ रहे एक इंजन पर चढ़ गए , चढ़ क्या गए लटक गए ! उस सुबह को अचानक
से कुहरे ने घेर लिया । एक और संयोग बना जैसे किसी दुर्घटना के लिए कोई मंच तैयार हो
रहा हो एक इंजन सहरसा की ओर से भी चला । बीच रास्ते में कहीं दोनों की टक्कर हो गयी
कुछ लोग मारे गये ।
वह मोबाइल फोन का जमाना नही
था । पुख्ता खबरों से ज्यादा अफवाहें पहुंची । सहरसा का दक्षिणी छोर सूचनाओं का गढ़
बन गया था । दुर्घटना हुई थी और दो या तीन लोग मारे गए थे पर दिन भर बहुत बड़ी दुर्घटना
की अफवाहें जारी रही । मरने वालों की संख्या पचास से ऊपर बताई जा रही थी । दूसरे तीसरे
दिन से बात आई-गयी होने लगी । सब अपने काम में लग गए और सही सूचना के आ जाने के बाद
लोगों के लिए अनुमानों के उड़ानों का कोई अर्थ नहीं रह गया था ।
पिछले एक सप्ताह से केरल के
इस इलाके में भारी वर्षा हो रही है और इस पहाड़ी क्षेत्र में कई अस्थायी झरने बन गए
हैं । जो बहुत मोहक रूप ले चुके हैं । एक तरफ यहाँ सौन्दर्य बढ़ा तो दूसरी तरफ खतरा
भी बढ़ा । ऊपर पहाड़ों से केवल पानी ही नहीं बल्कि मिट्टी और गाद भी खिसकने लगी साथ में
पेड़ और लताएँ भी ।
पहाड़ी रस्तों पर बरसात में
इस बात का खतरा बराबर बना रहता है कि आप जा रहे हों और अचानक से भूस्खलन हो गया । संभव
है कुछ लोग दब भी जाएँ । यहाँ पास ही में मुश्किल से 5 किलोमीटर दूर एक जगह भूस्खलन
हो गया और वहाँ खड़ी दुकाने दब गयी कुछ गाड़ियों के भी दबने की खबर मिली थी । बाद में
कुछ लोग वहाँ राहत कार्य होते देखने के लिए रुके तो फिर से भूस्खलन हो गया इस बार ज्यादा
लोग दब गए ।
जब खबरें हमारे स्टाफ रूम में
आई तो कोई भी हिन्दी या अंग्रेजी में बात नहीं कर रहा था । पर चिंता की अपनी भाषा होती
है शायद । किसी तरह मैं भी जान ही गया ।
दिन भर भारी बारिश होती रही
। इधर बिजली भी गायब और यहाँ का संपर्क रेल , सड़क और हवाई तीनों मार्गों से कट गया
। बाहर से आती खबरों के बीच बस इतनी ही रा हत थी कि विद्यालय का जेनेरेटर चल रहा था
और मैस में खाने का स्टॉक था । अंधेरी शाम में एक विद्यालय परिसर में कई गाड़ियों में
भरकर पुलिस वालों के आ जाने से पता चला केरल के मुख्यमंत्री घटनास्थल का दौरा करने
आ रहे हैं । चूंकि इस इलाके का संपर्क हर तरह से कटा हुआ है इसलिए वे सीधे हेलिकॉप्टर
से आएंगे और उसके लिए हमारे विद्यालय में आनन-फानन में हैलिपैड बनाया जा रहा है । मुख्यमंत्री
का आना अपने आप में इस बात की सूचना थी कि दुर्घटना बड़ी है ।
मेरे लिए ये कोई बड़ी चिंता
नहीं थी और न ही अन्य अध्यापकों या कि दूसरे कर्मियों के लिए पर यहाँ रह रहे छात्रों
के बीच बड़ा डर था । वे अपने माँ-बाप के पास जाना चाहते थे । दूसरे दिन सुबह से ही मुख्यमंत्री
के आने की सरगर्मी न सिर्फ स्कूल बल्कि उसके बाहर भी दिख रही थी । स्थानीय निवासी से
लेकर मीडिया तक सभी प्रतीक्षा में थे । दसवीं कक्षा की एक लड़की केवल इसलिए रो रही थी कि उसके पिता जो केरल पुलिस में हैं उनकी ड्यूटी
रात में वहीं थी जहां दुर्घटना हुई और आज वे यहाँ स्कूल में ड्यूटी दे रहे थे । छात्र
कक्षा में जाना नहीं चाह रहे थे । अंत में उन्हें भी बाहर खड़े होकर इंतजार करने का
मौका मिल गया । अभी तक जो बच्चे दुखी थे ,जो डरे हुए थे उनका दुख और डर छू-मंतर
हो गया । जब हेलिकॉप्टर दिखा तो उनहोने बकायदा ताली बजाना शुरू कर दिया ।
बच्चे अपने डर पर इतनी जल्दी
काबू पा लेंगे इसका मुझे अंदाज़ा नहीं था ।
केरल में कॉंग्रेस की सरकार
है और यहाँ यह भी देखा मैंने कि वामपंथी राजनीति की आम लोगों में गहरी पकड़ है । छात्र
व शिक्षक दोनों ही समूहों में मुख्यमंत्री के विरोधी ज्यादा थे पर जब समय आया तो सभी
बाहर ताली बजाते व फोटो खिंचवाते पाये गए । एक शिक्षक ने तो मेरे वहाँ नहीं जाने पर
बकायदा अफसोस जताया ।
मुख्यमंत्री के आने से अबतक
जो मामला बहुत गंभीर लग रहा था वह एक आयोजन जैसा बन गया । अचानक से दुर्घटना नेपथ्य
में चली गयी और मुख्यमंत्री का आना मुख्य हो गया । और ताज्जुब की बात ये कि लोग घटना
के इस राजनीतिकरण से दुखी भी थे और उस पूरी प्रक्रिया में शामिल भी थे । जब तक हेलिकॉप्टर
रहा लोगों का फोटो खिंचवाना जारी रहा । विद्यालय के मैदान से लगी सड़क दोनों ओर से स्थानीय
निवासियों से भरी थी । कभी जिनको भूस्खलन का दुख रहा होगा वे अब एक झलक के लिए पंक्तिबद्ध
होकर खड़े थे । मुख्यमंत्री के वापस उड़ जाने तक वे उसी तरह से बने रहे फिर बरसाती पानी
की तरह बह गए ।
बारिश अभी भी जारी है । उसी
तरह से । इस स्थान का संपर्क अभी भी सड़क मार्ग
से कटा हुआ है । अखबार नहीं पहुँच पा रहे हैं । बच्चे रास्ते के बिगड़ जाने से ईद में
घर नहीं जा पाये । उधर मलबा हटाने का कार्य अभी भी जारी है पर जो भय और संवेदना का
वातावरण बना था वह नदारद है । यहाँ तक कि कुछ उत्साही शिक्षक एक रात दुर्घटना स्थल
तक भी हो आए ।
संवेदना इतनी क्षणिक होकर रह
गयी कि जो छात्र कक्षा में उस दिन मुस्कुराने तक ही हिम्मत नहीं कर पा रहे थे वे फिर
से फिल्म दिखाने की मांग करने लगे हैं ।
एक बात तो अपने भीतर मैंने
भी महसूस की कि मोबाइल फोन के होने से एक हिम्मत बनी रही और घरवालों से बात कर ली तो
उनकी शंकाएँ भी जाती रही । इस तरह तकनीक ने एक बेफिक्री तो दी ही हमें ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
स्वागत ...