अगस्त 03, 2021

कैसे रहेगी श्रम की गरिमा ?


 

 

नयी शिक्षा नीति की कुछ बड़ी बातों में से व्यावसायिक शिक्षणको खूब प्रचारित किया गया । प्रचार का उद्देश्य और उसकी सामग्री दोनों ही साफ हैं । इस बहाने पूर्व की शिक्षा नीति को कोसा जा सकता है कि उसने विद्यालयी स्तर पर व्यावसायिक शिक्षण को कोई महत्व नहीं दिया और इसे एक हीन दर्ज़ा ही मिलता रहा, इसे पढ़ने वाले की आर्थिक हैसियत देखी जाती रही और अंततः यह अन्य विषयों की बराबरी नहीं कर पाया । यह बात ग़लत नहीं है । वोकेशनल कोर्स दोयम दर्जे के ही माने जाते रहे और उसका अन्य विषयों के साथ समावेश हो ही नहीं पाया साथ में यह भी सच है कि इसमें वे ही विद्यार्थी आते हैं जिनके परिवार की आर्थिक दशा खराब हो । सरकारी मॉडल स्कूल और निजी पूँजी से संचालित विद्यालयों में यह देखने को नहीं मिलता । कभी थोड़ा बहुत supw के नाम पर कुछ होता था लेकिन लंबे समय से वह भी ठंडे बस्ते में है । नवोदय विद्यालय में इसके अध्यापक का पद मरणासन्न अवस्था में है । निजी पूँजी वाले विद्यालय आर्ट एंड क्राफ़्ट जैसी चीज रखते हैं जो न आर्ट है न क्राफ़्ट । वह अंकों की अंधी दौड़ में शामिल होने पहले तक विद्यार्थियों को उलझाए रखने और साल में एक दो बार कोई पेंटिंग बना लेने तक सीमित है । ज़ाहिर सी बात है जो पैसे खर्च करके शिक्षा लेंगे वे ऐसा कुछ क्यों सीखेंगे जो श्रमिक सुलभ काम माना जाता हो ।

 

अब बात प्रचार की सामग्री की तो कहा गया कि श्रम की गरिमापैदा करने के लिए और धीरे-धीरे व्यावसायिक शिक्षण को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए इस शिक्षा नीति में ज़ोर दिया गया है । ऐसा सुनना पढ़ना काफी सुखद लगता है लेकिन स्थिति इसके उलट है । यदि सचमुच ऐसा करना था तो इसे एक झटके में एक विषय के रूप में निजी से लेकर सभी सरकारी विद्यालयों में अनिवार्य विषय के रूप में लगा देते और इनमें काम आने वाले विषयों के लिए अध्यापकों की नियुक्ति करते । परंतु असलियत यह है कि वोकेशनल कोर्सेज में ऐसे विषय शामिल किए जा रहे हैं जो श्रम के गरिमा के सरकारी एजेंडे के खिलाफ जाते हैं । मसलन चौकीदारी के प्रशिक्षण को लें । यह ऐसा कार्य है जिसके लिए किसी विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं पड़ती । कोई पहले से कैसे तय कर ले कि उसे जीवन भर चौकीदार बनना है ! जिसने इसे अपने विकास की अधिकतम सीमा मान ली उसकी आर्थिक – सामाजिक स्थिति का अनुमान लगाना कठिन नहीं है । यह पुराने ढर्रे की ही तो बात हुई । ग्यारहवीं और बारहवीं के दो वर्षों तक कोई प्लंबिंग का काम सीखता है और मान लेते हैं कि वह बाहर आते ही काम पर लग जाएगा तब यह तो तय है कि जीवन भर उसे यही करना है । चौकीदारी हो चाहे प्लंबिंग हो पेशे को बदल सकने का तो विकल्प ही खत्म हो जाएगा उनके लिए । इसे नयी तरह की जाति व्यवस्था मानने के अलावा और कोई विकल्प ही नहीं है । ऐसे में श्रम की गरिमा वाली बात समझ से परे है !

 

कुछ राज्य इसमें भी चालाकी कर रहे हैं । वे विद्यार्थियों को तीन भाषा और फिर व्यावसायिक विषय का विकल्प तो दे रहे हैं लेकिन तीन में दो भाषाएँ हिंदी और अंग्रेजी को एक दूसरे के विकल्प के रूप में रख रहे हैं । जबकि संस्कृत वोकेशनल कोर्स पढ़ने वालों के लिए अनिवार्य विषय होने वाला है । एक तो व्यावसायिक शिक्षण को एकदम सामान्य प्रशिक्षण से सीखे जाने वाले विषयों तक सीमित कर रहे हैं दूसरे उनको अंग्रेजी हिंदी के विकल्प के रूप में दे रहे हैं । अंग्रेजी को अनिवार्य विषय होना चाहिए और संस्कृत को कहीं होना ही नहीं चाहिए था । इसके बदले कोई विदेशी भाषा दो साल पढ़ ले इंसान तो वह कहाँ पहुँच जाये उसकी सीमा नहीं है । संस्कृत का आज के समय में रोजगार से दूर-दूर तक का संबंध नहीं है । फिर भी उसे पढ़ाने के उद्देश्य को समझना कठिन नहीं है । कम से अंग्रेजी भी अनिवार्य हो तो एक अलग तरह की दक्षता आए । 



 

 

श्रम की गरिमा के लिए तो सीधा सीधा सबके लिए व्यावसायिक शिक्षा अनिवार्य करना होगा । वैसे भी देश में रोज़गार की जो स्थिति है उसमें यह एक बेहतर विकल्प ही नज़र आ रहा है । तथाकथित सामान्य विषय पढ़कर भी रोज़गार की कोई गारंटी नही है ऐसे में सबको ही समाज की जरूरतों के सापेक्ष कौशलों का प्रशिक्षण दिया जाये तो बेहतर । ताकि वे उसका उपयोग कर अपनी रोज़ी रोटी का इंतिज़ाम कर पाएंगे ! ध्यान इन समाज सापेक्ष कौशलों पर भी देना होगा कि इसमें जड़ता और रूढ़िबद्धता न रहे । बदलते समय के साथ ढलने और नए विषय शामिल कर सकने जितना लचीलापन हो । आज की ज़रूरत आईटी , मोबाइल लैपटॉप की मरम्मती , विदेशी भाषा सीखना आदि है इनके बदले कामचलाऊ और प्रतिगामी काम व भाषा सीखकर उन विद्यार्थियों का भला नहीं होगा जो तत्काल रोज़गार चाहते हैं । एक विदेशी भाषा सीखने की अनिवार्यता उन्हें देश ही नहीं बल्कि इससे बाहर भी रोज़गार के लिए अपेक्षित कौशलों से युक्त कर देगी ।

और सबसे बड़ी बात यही है कि श्रम की गरिमा उस क्षेत्र में उपलब्ध रोज़गार से जुड़ी हुई है ।  

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